Allahabad High Court : तलाक के मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्प्णी, केवल इस कारण अमान्य नहीं हो सकती शादी
Allahabad High Court : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने तलाक के मामले में महत्तवपूर्ण टिप्पणी की है. बता दें कि फैमिली कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें मैरिज सर्टिफिकेट जमा करने की ज़रूरत से छूट देने की मांग की गई थी... कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए इस खबर को पूरा पढ़ लें-

MY Job Alarm : (Allahabad High Court) इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया है कि सिर्फ रजिस्टर्ड न होने से हिंदू विवाह अमान्य नहीं हो जाता है. कोर्ट ने कहा कि फैमिली कोर्ट (family court) तलाक की अर्जी में मैरिज रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट जमा करने पर जोर नहीं डाल सकती.
न्यायमूर्ति मनीष कुमार निगम ने आजमगढ़ की फैमिली कोर्ट के एक आदेश को रद्द कर दिया. फैमिली कोर्ट ने उस याचिका को खारिज कर दिया था, जिसमें मैरिज सर्टिफिकेट जमा करने की ज़रूरत से छूट देने की मांग की गई थी.
इस मामले में पति और पत्नी ने 23 अक्टूबर 2024 को हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 (B) के तहत आपसी सहमति से तलाक के लिए संयुक्त रूप से याचिका की थी. कार्यवाही के दौरान फैमिली कोर्ट ने पक्षकारों को विवाह प्रमाण पत्र दाखिल करने का आदेश दिया. याची ने पत्नी के समर्थन से एक अर्जी देकर कहा कि प्रमाण पत्र नहीं है, क्योंकि उनका विवाह पंजीकृत नहीं हुआ था. उन्होंने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पंजीकरण अनिवार्य नहीं है और इस आवश्यकता से छूट देने की प्रार्थना की.
उच्च न्यायालय ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को रद्द कर दिया जिसमें हिंदू विवाह और तलाक नियम (Hindu Marriage and Divorce Rules) 1956 के नियम 3 (ए) के तहत विवाह प्रमाण पत्र न होने के कारण एक आवेदन खारिज कर दिया गया था. आवेदक के वकील ने तर्क दिया कि हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 8 पंजीकरण को अनिवार्य नहीं करती है, और विवाह प्रमाण पत्र के अभाव में विवाह को अमान्य नहीं ठहराया जा सकता. उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियमावली (Uttar Pradesh Marriage Registration Rules) 2017 का नियम 6 भी इस बात की पुष्टि करता है. इस तरह, कोर्ट ने पंजीकरण के अभाव में भी आवेदन को स्वीकार करने का आदेश दिया.
कोर्ट ने कहा कि जहां राज्य के नियम पंजीकरण को अनिवार्य बनाते हैं, वहां भी पंजीकरण के अभाव में विवाह को अमान्य घोषित करने वाला कोई नियम नहीं हो सकता. इस स्थिति को उत्तर प्रदेश विवाह पंजीकरण नियमावली 2017 के नियम 6 (2) द्वारा और समर्थन मिलता है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पंजीकरण प्रमाण पत्र दाखिल करने की आवश्यकता केवल उन मामलों में है जहां विवाह अधिनियम की धारा 8 के तहत पंजीकृत है. स्वीकार्य रूप से इस मामले में 2010 में संपन्न हुआ विवाह पंजीकृत नहीं है और इसलिए पंजीकरण प्रमाण पत्र (registration certificate) दाखिल करने की कोई आवश्यकता नहीं है.
कोर्ट ने इस सिद्धांत का भी आह्वान किया कि प्रक्रियात्मक कानून न्याय की सुविधा के लिए हैं, न कि बाधा उत्पन्न करने के लिए. न्यायालय ने कहा कि यह 'प्रक्रिया' है, जो न्याय को सुगम बनाने और उसके उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए बनाई गई है. यह दंड और जुर्माने के लिए कोई दंडात्मक विधान (penal legislation) नहीं है. यह लोगों को फंसाने के लिए बनाई गई कोई चीज नहीं है.
उच्च न्यायालय ने कहा कि फैमिली कोर्ट (family court) का विवाह प्रमाण पत्र पर जोर देना गलत था, क्योंकि विवाह पर कोई विवाद नहीं था. यह तथ्य दोनों पक्षों ने तलाक की याचिका में स्वीकार किया था. अदालत ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द कर दिया और उसे आपसी सहमति से तलाक के मामले का शीघ्र निपटारा करने का निर्देश दिया.