wheat price hike : किस गेम में फंस गया गेहूं, जानिये क्यों बढ़ रहे गेहूं के इतने रेट
Wheat Flour Price : गेहूं की बढ़ती कीमतों ने महंगाई में आम लोगों की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। जहां पिछले साल की तुलना में इस बार गेहूं का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर हुआ है, वहीं इसके बावजूद गेहूं के दाम तेजी से बढ़ रहे हैं। लोगों को उम्मीद थी कि अच्छी पैदावार से कीमतों में राहत मिलेगी, लेकिन बाजार में इसका उल्टा असर देखने को मिल रहा है। गेहूं और आटे की बढ़ती कीमतों से रोजमर्रा की जरूरतों का खर्च बढ़ गया है, जो आम आदमी के बजट पर असर डाल रहा है।

My job alarm - (Mandi Bhav) भारत में गेहूं और आटे (wheat and flour price) की लागतार बढ़ती कीमतें हर किसी को परेशान कर रही हैं। चाहे घर में रोटी बनानी हो या बाहर खानी हो, हर जगह गेहूं के बढ़ते दाम का असर साफ दिख रहा है। गेहूं की रोटी महंगी हो रही है इसका सबसे बड़ा कारण है गेहूं की कीमतों (wheat Rate) आसमान छू रही है। लेकिन सवाल ये है कि आखिर इतनी बंपर पैदावार, एक्सपोर्ट बैन और सरकारी गोदामों में पर्याप्त भंडार के बावजूद गेहूं और आटा महंगा क्यों हो रहा है?
आपके मन में भी ये सवाल जरूर उठता होगा कि गेहूं और आटे के दाम (flour price Today) आखिर क्यों बढ़ते जा रहे हैं। सरकार ने सस्ते दाम पर गेहूं बेचने और व्यापारियों पर स्टॉक लिमिट लगाने जैसे कई कदम उठाए हैं, लेकिन इसके बावजूद कीमतें कम नहीं हो रही हैं। जबकि इस साल गेहूं का उत्पादन देश की जरूरत से ज्यादा हुआ है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या किसान और व्यापारी अच्छे दाम के इंतजार में गेहूं स्टोर करके रख रहे हैं, ताकि मुनाफा बढ़ सके? कीमतें थामने के लिए उठाए गए कदमों के बावजूद ये महंगाई कब थमेगी, इस पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं।
गेहूं की कीमतों में बंपर उछाल -
यदि हम सरकारी आंकड़ों की बात करें तो उपभोक्ता मामलों के मंत्रालय के अनुसार 25 अक्टूबर 2024 को देश में गेहूं का औसत दाम 31.36 रुपये प्रति किलो था, जबकि आटे का औसत भाव 36.51 रुपये प्रति किलो तक पहुंच गया था। इसके बावजूद, सरकार द्वारा गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य ((Minimum Support Price of Wheat)) 22.75 रुपये प्रति किलो तय किया गया है। हालांकि, बाजार में खुदरा और थोक दाम लगातार बढ़ रहे हैं। पिछले एक साल में गेहूं का थोक मूल्य 27.34 रुपये प्रति किलो तक बढ़ चुका है, जो कि पिछले साल के मुकाबले करीब 14.81 प्रतिशत अधिक है।
मंडियों में गेहूं का ताजा भाव?
केंद्रीय कृषि मंत्रालय के मुताबिक, 25 अक्टूबर 2024 को गेहूं का थोक दाम (wheat price) 27.34 रुपये प्रति किलो था, जबकि पिछले साल इसी दिन यह 23.82 रुपये था। यानी एक साल में इसमें 14.81 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। अगर तीन साल पहले देखें, तो 25 अक्टूबर 2021 को इसका दाम 19.84 रुपये प्रति किलो था, जिससे अब तक गेहूं का मंडी भाव (taja mandi bhav) 37.79 प्रतिशत तक बढ़ चुका है। इस वृद्धि से किसानों को तो फायदा हो रहा है, लेकिन इससे उपभोक्ता काफी परेशान हैं। लगातार बढ़ते दामों के कारण आम जनता की जेब पर असर पड़ रहा है, और महंगाई के इस दौर में सस्ती रोटी भी लोगों के लिए चुनौती बनती जा रही है।
सरकारी गोदामों में कितना गेहूं -
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि गेहूं का बफर स्टॉक कम या ज्यादा होने से उसके दाम पर असर पड़ता है। हालांकि, भारत में इस समय पर्याप्त सरकारी भंडार उपलब्ध है, जो खुद केंद्र सरकार की एक रिपोर्ट से साबित होता है। 1 अक्टूबर को देश में बफर स्टॉक के मानकों से 32.63 लाख टन अधिक गेहूं का भंडार था। मानक के अनुसार, हर साल 1 अक्टूबर को सरकारी गोदामों में कम से कम 205.20 लाख टन गेहूं होना चाहिए, जबकि इस साल 237.83 लाख टन गेहूं उपलब्ध था।
देश में गेहूं की खपत?
नीति आयोग की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021-22 में देश में गेहूं की मांग 971.20 लाख टन थी, जो 2028-29 तक बढ़कर 1070.8 लाख टन होने का अनुमान है। इसी हिसाब से 2024 में गेहूं की मांग लगभग 1001 लाख टन है। दूसरी ओर, केंद्रीय कृषि मंत्रालय के अनुसार, 2023-24 में गेहूं का उत्पादन 1132.92 लाख मीट्रिक टन हुआ है, जो पिछले साल से 27.38 लाख मीट्रिक टन अधिक है। इसका मतलब है कि देश में इस समय गेहूं का कोई संकट नहीं है, फिर भी दाम लगातार बढ़ रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि पर्याप्त उत्पादन और स्टॉक के बावजूद गेहूं और आटे की कीमतों में यह वृद्धि क्यों हो रही है।
जानिये गेहूं की कीमत बढ़ने की वजह?
बाजार विशेषज्ञों का कहना है कि कई व्यापारी और किसान अच्छे दाम की उम्मीद में गेहूं का स्टॉक (Wheat Stock ) कर रहे हैं, जिससे इसकी कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है। रोलर फ्लोर मिलर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रमोद कुमार एस ने भी इस ओर इशारा किया है। उन्होंने कहा कि कुछ बड़े व्यापारियों ने गेहूं का स्टॉक किया हुआ है और उन्हें स्टॉक सीमा (Wheat Stock Limit) से छूट भी मिली हुई है। ऐसे में अगर गेहूं और आटा सस्ता करना है, तो आयात करना एक विकल्प हो सकता है। बाजार में नरमी लाने के लिए कम से कम 50 लाख टन गेहूं का आयात जरूरी है। हालांकि, यह तभी संभव हो पाएगा जब आयात पर जीरो ड्यूटी लगा दी जाए।
भारत में गेहूं पर लगता है इतना आयात -
वर्तमान की बात करें तो भारत में गेहूं आयात (wheat import) पर 40 प्रतिशत ड्यूटी है, जिससे गेहूं का आयात काफी महंगा हो जाता है। यदि सरकार आयात पर जीरो ड्यूटी लागू कर दे, तब भी रूस से भारत के तमिलनाडु स्थित तूतीकोरिन पोर्ट तक गेहूं लाने में भाड़ा समेत इसकी कीमत लगभग 2700 रुपये प्रति क्विंटल पड़ेगी, जो कि भारत के मौजूदा बाजार दर से थोड़ी कम होगी। ऐसे में यदि सरकार को गेहूं की कीमतें नियंत्रित करनी हैं और जनता को सस्ती रोटी उपलब्ध करानी है, तो इस 40 प्रतिशत ड्यूटी को समाप्त करना ही एक प्रभावी कदम हो सकता है। इससे आयात सस्ता होगा और बाजार में गेहूं (wheat mandi rate) की आपूर्ति बढ़ेगी, जिससे कीमतों में कमी आने की संभावना है। सरकार के इस कदम से आम लोगों को राहत मिल सकती है, खासकर उन लोगों को जिनके लिए बढ़ती कीमतें परेशानी का कारण बन रही हैं।