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Success Story : मकान का किराया देने के लिए नहीं थे 50 रुपये, अब खड़ी कर डाली करोड़ों की कंपनी

Chandubhai Veerani Ki Success Story : कभी-कभी गरीबी भी इंसान को अमीरी का दरवाजा दिखा देती है। विकट हालातों से लड़ते हुए चंदुभाई वीरानी का  बचपन आर्थिक तंगी के बीच गुजरा। पैसों के अभाव में पढ़ाई छोड़नी पड़ी और फिर नौकरी की। नौकरी करते-करते उन्होंने एक ऐसा काम शुरू किया कि लाइफ ही बदल गई और करोड़ों की कंपनी बना डाली। आइये जानते हैं इनकी सफलता की कहानी। 

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Success Story : मकान का किराया देने के लिए नहीं थे 50 रुपये, अब खड़ी कर डाली करोड़ों की कंपनी 

My job alarm (ब्यूरो)। गिरकर जो संभल जाते हैं वे दुनिया में नाम भी रोशन कर जाते हैं। कठिन हालात से जूझकर मुकाम को पाने वाले चुनिंदा लोग ही होते हैं। ऐसे ही लोगों में शामिल हैं चंदुभाई वीरानी (Chandubhai Veerani)। इन्होंने किसी समय में आर्थिक तंगी को इस कद्र झेला था कि मकान का किराया देने तक के पैसे नहीं थे। आज ये 4000 करोड़ की कंपनी के मालिक हैं। कड़े संघर्ष के बाद इन्होंने यह सफलता (Business Idea) पाई है, जो आज हर किसी के लिए प्रेरणादायी है।

10 हजार रुपये में किया था काम शुरू


यह तो आप जानते ही होंगे कि बालाजी वेफर्स (Balaji Wafers Success Story) के फेमस नमकीन ब्रांड है। आज के समय में ये कंपनी चिप्स और स्नैक्स बनाने वाली देश की सबसे बड़ी कंपनियों में गिनी जाती है। इस कंपनी के मालिक चंदुभाई वीरानी ने कभी 10 हजार रुपए से होम-मेड चिप्स बनाने का काम शुरू किया था। 

आर्थिक तंगी के कारण छोड़ी पढ़ाई, फिर तलाशा था रोजगार

चंदुभाई के पिता रामजीभाई वीरानी (Chandubhai Veerani Ki Saflata ki kahani) किसान थे। बात 1972 की है जब उन्होंने अपने तीन बेटों मेघजीभाई, भीखूभाई और चंदुभाई को 20 हजार रुपए दिए। चंदुभाई का परिवार जामनगर के ढुंडोराजी में रहता था। उनके बड़े भाई ने कृषि में पैसा लगाया। सूखे के चलते फसल बर्बाद हो गई और पैसा डूब गया। ऐसे में आर्थिक स्थिति बद से बदतर हो गई। चंदुभाई राजकोट चले गए। सबसे छोटे भाई कनुभाई माता-पिता और और दो बहनों के साथ वहीं रह गए। आर्थिक तंगी के चलते चंदुभाई ने 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी और रोजगार की तलाश में जुट गए। 

सिनेमाघर में मिला था यह काम

चंदुभाई को राजकोट में एक सिनेमाघर की कैंटीन में नौकरी मिल गई। उन्होंने 90 रुपए की तनख्वाह पर फिल्म के पोस्टर चिपकाने, देखभाल और साफ-सफाई का काम भी किया। चंदुभाई रात में सिनेमाघर में फटी सीटों की मरम्मत भी करते थे। वीरानी भाइयों को सिनेमाघर के कैंटीन (Business Idea) के मालिक ने अच्छा काम देखते हुए उनको एक हजार रुपए प्रति महीने का कॉन्ट्रैक्ट दिया। इसके बाद सभी भाइयों ने कैंटीन में सामान बेचना शुरू किया। इसमें आलू वेफर्स भी शामिल था। जब यह बात सामने आई कि आलू वेफर्स (Balaji wafers company) का सप्लायर ठीक से काम नहीं कर रहा है तो चंदुभाई ने सोचा कि क्यों ना खुद आलू वेफर्स बनाया जाए और सप्लाई किया जाए। यहीं से चंदुभाई की जिंदगी का टर्निंग प्वाइंट बना।

बैंक से लिया था 50 लाख का कर्ज

चंदुभाई वीरानी ने 1982 में घर पर ही चिप्स बनाने का काम शुरू किया था। यह एक शेड में ही 10 हजार रुपये निवेश करके शुरू किया था। चंदुभाई कैंटीन में काम करने के बाद चिप्स बनाते थे। समय के साथ ही जल्द चंदुभाई दुकानों पर वेफर्स सप्लाई करने लगे। साल 1984 में उन्होंने ब्रांड (Balaji wafers company) का नाम बालाजी रखा। इसके बाद फैक्ट्री लगाने की सोची तो पैसे नहीं थे। इसके लिए साल 1989 में राजकोट में एक फैक्ट्री की शुरुआत की तो इसके लिए बैंक से 50 लाख रुपए कर्ज लिया। उस वक्त गुजरात में सबसे बड़ा आलू वेफर प्लांट (Balaji wafers Plant) लगाया। हालांकि एक समय ऐसा भी था कि चंदुभाई वीरानी के परिवार ने आर्थिक तंगी को भी झेला है। 50 रुपये भी किराया न चुका पाने के कारण इनको एक बार घर छोड़कर भागना पड़ा था। हालांकि बाद में मकान मालिक का पैसा चुकाया। 

आज देश के इन राज्यों में है कारोबार

कंपनी का कारोबार फिलहाल भारत के गुजरात, महाराष्ट्र, गोवा, राजस्थान, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के कई क्षेत्रों में फैला है। कंपनी में 5 हजार के करीब तो कर्मचारी हैं। इन्होंने महिलाओं को भी रोजगार दिया है। कंपनी का टर्नओवर 4000 करोड़ रुपए के करीब है। डिस्ट्रीब्यूशन नेटवर्क में भी कई मुख्य डिस्ट्रीब्यूटर, सैकड़ों डीलर और लाखों दुकानदार हैं। 4 प्लांट से कंपनी उत्पादन कर रही है।

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