RBI इन 4 जगहों पर बनाता है सिक्के, जानिये क्यों छोटा होता जा रहा है सिक्कों का साइज
My job alarm - (Indian Coins manufacturing) भारत में बहुत से ऐसे लोग है जिन्हे कि पुराने सिक्के और नोट का संग्रहण करने का शौंक होता है। अभी बेशक पुराने सिक्कों की जगह नए सिक्कों ने ले ली (old and new coins) है लेकिन अभी भी आपको मार्केट में या किसी के पास पुराने सिक्के देखने को मिल ही जाएंगे कुछ लोग तो इन पुराने सिक्को का खास संग्रहण (old currency collection) रखते है। अगर आप भी इन सिक्कों को एकत्रित करते है तो क्या आपको ये पता है कि आखिर ये बने किस धातू से होते है। इन्हे बनाने का प्रोसेस क्या होता है या फिर ये बनते कहां है। भारत में ऐसे कौन से शहर है जहां इनका निर्माण किया जाता है। अगर आप ये सब नही जानते है तो आज की हमारी ये खबर इन सारे सवालो के जवाब देने वाली है। आपको बता दें कि रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI official website) की वेबसाइट के अनुसार भारत में सिक्कों को 4 जगह पर ढाला या Mint किया जाता है।
RBI की जिम्मेदारी
बहुत से लोगों को भारतीय अर्थव्यवस्था (Indian economy) के बारे में जानकारी ही नही होती है। लोगों को पता ही नही है कि भारत में करेंसी नोट छापने और अर्थव्यवस्था में सर्कुलेट करने की जिम्मेदारी किसकी होती है। ऐसे में हम अपको बता दें कि ये जिम्मेदारी भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India) के पास होती है। भारत का केंद्रीय बैंक ही अर्थव्यवस्था में करेंसी को रेगुलेट करता है। अगर बाजार में ज्यादा पैसा है तो आरबीआई मौद्रिक नीति (RBI monetary policy) के जरिए उसे कम करता है।
लेकिन वहीं, अगर बाजार में कम पैसा है तो उसे आरबीआई की मौद्रिक नीति के तहत ही बढ़ाया भी जाता है। इस सब में एक बात जरूर जान लें कि 1 रुपये के नोट छापने की जिम्मेदारी (Responsibility of printing 1 rupee notes) वित्त मंत्रालय के पास होती है। इसपर वित्त सचिव का सिग्नेचर होता है। हालांकि, आरबीआई के जरिए ही वित्त मंत्रालय (Ministry of Finance) अर्थव्यवस्था में 1 रुपये के नोट व सिक्के सर्कुलेट करता है।
जान लें भारत में कहां-कहां बनते हैं सिक्के?
नोट और सिक्कों के बारे में रोचक जानकारियां एकत्रित करना चाहते है तो आपको इस खबर में हम ये बताएंगे कि जो सिक्के भारत में इस्तेमाल किए जाते है वो आखिर बनते कहां है। बता दें कि RBI के अनुसार भारत में केवल 4 जगहों पर ही सिक्के बनाए जाते हैं। ये जगहें मुंबई, अलीपोर (कोलकाता), हैदराबाद और नोएडा (Where coins are minted in India) हैं। इतना ही नही, आप सिक्कों पर बने एक चिन्ह को देखकर भी पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का कहां बना है। हर सिक्के पर उसके मिंट किए जाने का साल लिखा होता है। सिक्कों पर लिखे इसी साल के नीचे यह चिन्ह बना होता है, जिसकी मदद से आप पता लगा सकते हैं कि यह सिक्का किस जगह पर मिंट किया गया है।
इसकी पहचान करने के लिए हम आपके बता दें कि किसी सिक्के पर अगर एक सितारा बना है तो इसका मतलब है कि इस सिक्के को हैदराबाद में मिंट किया गया है। नोएडा में मिंट होने वाले सिक्के पर एक ‘सॉलिड डॉट’ होता है। मुंबई में मिंट किए गए सिक्कों पर ‘डायमंड’ का आकार होता है। कोलकाता में मिंट किए गए सिक्कों पर ऐसा कोई चिन्ह नहीं होता (coins mint signs) है।
अगर इनकी छपाई और बनाई के नियमों और कानूनों की बात करें तो भारत में क्वाइनेज एक्ट (Coinage Act in India) 1906 के तहत सिक्कों को मिंट किया जाता है। इस एक्ट के तहत ही भारत सरकार की तरफ से सिक्कों के उत्पादन और उसकी सप्लाई की जिम्मेदारी आरबीआई को दी गई है। आरबीआई इस मकसद के लिए साल भर का लक्ष्य तय करती है और भारत सरकार प्रोडक्शन का प्रोग्राम बनाती है।
भारत सरकार धातुओं के मूल्य के आधार पर समय-समय पर विभिन्न धातुओं को उपयोग में लाती है। फिलहाल अधिकांश सिक्कों के निर्माण (manufacturing of coins in India) के लिए फेरिटिक स्टेनलेस स्टील (17% क्रोमियम और 83% आयरन) का उपयोग किया जा रहा है।
दिन प्रतिदिन सिक्कों का आकार हो रहा छोटा.. जानें कारण
इसके पीछे भी एक वजह है। किसी भी सिक्के की दो वैल्यू होती है। एक ‘फेस वैल्यू’ और दूसरी ‘मेटैलिक वैल्यू’। सबसे पहले हम बात करते है फेस वैल्यू (face value of coin) की जिसका मतलब होता है सिक्कों पर जो वैल्यू लिखी है। मतलब कि अगर कोई सिक्का 1 रुपये का है तो उसकी फेस वैल्यू 1 रुपये ही होगी। इसी प्रकार 2 रुपये सिक्के की वैल्यू 2 रुपये और 5 रुपये के सिक्के की वैल्यू 5 रुपये है।
इसके अलावा अगर हम मेटैलिक वैल्यू (metallic value) की बात करें तो आपको बता दें कि मेटैलिक वैल्यू वो वेल्सू होती है जिससे ये पता चलता है कि उस सिक्के को बनाने में कितना खर्च किया गया है। मान लीजिए कि अगर किसी सिक्के को पिघलाया जाता है उसके प्राप्त मेटल को 5 रुपये में बेचा जाता है तो उसकी मेटैलिक वैल्यू 5 रुपये होगी। अगर अभी भी आप नही समझे है तो आइए हम आपको एक उदहारण की सहायत से समझाते हैं।
मान लो कि कोई व्यक्ति एक रुपये के सिक्कों को पिघलाकर 2 रुपये में बेच रहा है, तो उन्हें इस एक रुपये के सिक्के पर 1 रुपये का अतिरिक्त फायदा मिल रहा है। इस प्रकार इस व्यक्ति को 1 रुपये का नुकसान तो हुआ, लेकिन बदले में उन्हें 2 रुपये का फायदा भी हुआ।
क्या है सिक्कों की मैटेलिक वैल्यू का लाभ?
किसी भी सिक्के की मैटालिक वेल्यू (what is metallic value of coin) और फेस वेल्यू (what is face value of coin) अलग-अलग होती है। ऐसे में यह भी हो सकता है कि मेटैलिक वैल्यू का फायदा उठाने के लिए लोग सभी सिक्कों को पिघलाकर उनसे मुनाफा कमा लें। एक ऐसा भी समय आ सकता है, जब बाजार में से सारे सिक्के ही गायब हो जाए। ऐसी स्थिति में सरकार और अर्थव्यवस्था को लिए बड़ी चुनौती खड़ी हो जाएगी।
यही वजह है कि सिक्कों के मेटैलिक वैल्यू को उसके फेस वैल्यू से कम रखा जाता है। इससे लोगों के पास सिक्के पिघलाकर मुनाफा कमाने का मौका न मिले। इसीलिए सरकार हर साल महंगाई (inflation rate) के हिसाब से सिक्कों की साइज और वजन कम करती रहती है। साइज और वजन कम होने से ऑटोमैटिकली उसकी मेटैलिक वैल्यू कम हो जाएगी।