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Property registration charges : रजिस्ट्री कराने पर कितना लगता है चार्ज, यहां समझें पूरा कैलकुलेशन, कोई नहीं ठग पाएगा ज्यादा पैसा

Property registration : प्रॉपर्टी खरीदने के बाद उसपर मालिकाना हक साबित करने के लिए रजिस्ट्री कराई जाती है और  ज्यादातर भारतीय लोग प्रॉपर्टी की रजिस्ट्री अपनी मां या पत्नी के नाम पर कराते हैं। इसका मुख्य कारण है कि महिलाओं के नाम पर रजिस्ट्रेशन कराने पर स्टांप शुल्क और रजिस्ट्री चार्ज कम होते हैं। अगर आप जमीन या मकान खरीदने की योजना बना रहे हैं, तो रजिस्ट्री चार्ज के बारे में जानना बेहद जरूरी है। रजिस्ट्री चार्ज सरकार द्वारा तय किया जाता है और यह प्रॉपर्टी की लोकेशन, उसके प्रकार और कीमत पर निर्भर करता है। आईये जानते हैं - 

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Property registration charges : रजिस्ट्री कराने पर कितना लगता है चार्ज, यहां समझें पूरा कैलकुलेशन, कोई नहीं ठग पाएगा ज्यादा पैसा  

My job alarm - जब आप जमीन या मकान खरीदते हैं, तो उसकी रजिस्ट्री कराना एक महत्वपूर्ण और कानूनी प्रक्रिया है। रजिस्ट्री का मतलब है कि संपत्ति का मालिकाना हक कानूनी तौर पर आपके नाम पर ट्रांसफर हो गया है। रजिस्ट्री के दौरान सरकार द्वारा निर्धारित विभिन्न दस्तावेज (property document) जमा करने होते हैं, जिन्हें खरीदार और विक्रेता दोनों पक्षों को प्रस्तुत करना पड़ता है। इसमें जमीन या मकान की जानकारी, मालिकाना हक से जुड़े दस्तावेज और अन्य आवश्यक प्रमाणपत्र शामिल होते हैं।


इसके अलावा, संपत्ति के रजिस्ट्रेशन के लिए सरकार द्वारा तय किए गए रजिस्ट्री चार्ज का भुगतान करना होता है। ये चार्ज संपत्ति के प्रकार और स्थान के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं।

भारत में जमीन की रजिस्ट्री  (Land Registry Rules in India) एक कानूनी प्रक्रिया है, जिसे सरकार सुनिश्चित करती है। रजिस्ट्री के दौरान संपत्ति का मालिकाना हक खरीदार के नाम पर ट्रांसफर किया जाता है। इसके लिए सरकार द्वारा निर्धारित शुल्क लिया जाता है, जो जमीन की कीमत और स्थान के आधार पर तय होता है। अगर आपको रजिस्ट्री चार्ज के बारे में जानकारी नहीं है, तो आप संबंधित राज्य के ऑनलाइन पोर्टल पर जाकर इसे आसानी से जांच सकते हैं। यह सुविधा पारदर्शिता बनाए रखने और खरीदारों को सटीक जानकारी देने के लिए उपलब्ध कराई गई है।

कैसे तय होता है रजिस्ट्री का पैसा


जमीन की रजिस्ट्री (land registry) में लगने वाले पैसे में मुख्य होता है, स्टांप ड्यूटी चार्ज। यानी जमीन की रजिस्ट्री में जो खर्च आता है, उसे सरकार स्टांप के जरिये आपसे लेती है। अलग-अलग जमीन के अनुसार अलग-अलग स्टांप ड्यूटी लगाई जाती है। जैसे गांव में जमीन खरीदने पर कम चार्ज लगता है और शहर में जमीन खरीदने पर ज्यादा चार्ज देना होगा। ये स्टांप ड्यूटी चार्ज उस जमीन की सर्किल रेट या जमीन का सरकारी रेट के अनुसार देना होता है।


स्टांप शुल्क दरें राज्य सरकार द्वारा तय की जाती हैं और इसलिए वे देश भर में भिन्न-भिन्न होती हैं। जो संपत्ति मूल्य के 3 प्रतिशत से 10 प्रतिशत तक होती हैं। संपत्ति पर स्टांप शुल्क (Stamp duty on property) के अलावा, आपको पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना होगा, जो आमतौर पर केंद्र सरकार द्वारा लगाया जाता है और राज्य भर में तय किया जाता है। आम तौर पर, संपत्ति के कुल बाजार मूल्य का 1 प्रतिशत पंजीकरण शुल्क के रूप में लिया जाता है।


उदाहरण से समझें कैल्कुलेशन


जब आप संपत्ति खरीदते हैं, तो स्टांप शुल्क और पंजीकरण शुल्क का भुगतान करना अनिवार्य होता है। इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं।
अगर कोई व्यक्ति दिल्ली में 60 लाख रुपये की संपत्ति खरीद रहा है, जहां स्टांप शुल्क (stamp duty) की दर 6 प्रतिशत है, तो उसे 3.6 लाख रुपये स्टांप शुल्क के रूप में चुकाने होंगे। इसके साथ ही, पंजीकरण शुल्क 1 प्रतिशत  है, जो इस स्थिति में 60,000 रुपये होगा। इस तरह कुल मिलाकर उसे 4.2 लाख रुपये का भुगतान करना होगा। हालांकि, यदि यह संपत्ति किसी महिला के नाम पर रजिस्टर्ड होती है, तो स्टांप शुल्क में छूट मिलती है। दिल्ली में महिलाओं के लिए स्टांप शुल्क 
(Delhi Stamp Duty List) की दर 4 प्रतिशत है। ऐसे में महिला को 60 लाख की संपत्ति पर 2.4 लाख रुपये स्टांप शुल्क देना होगा, जबकि पंजीकरण शुल्क 60,000 रुपये ही रहेगा।

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