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Income Tax Noice : इनकम टैक्स विभाग ऐसे पकड़ लेता है टैक्सपेयर्स की चालाकी, फिर भेजता है नोटिस

Income Tax New System : इनकम टैक्स विभाग ने इस बार एक ऐसा सख्त सिस्टम बनाया है जिससे फर्जी दस्तावेज़ के जरिए टैक्स बचाना अब आसान नहीं होगा। कई करदाता पहले फर्जी रेंट स्लिप के सहारे टैक्स में छूट का फायदा उठा लेते थे, लेकिन अब यह सब पकड़ में आ रहा है। अब विभाग हर करदाता की सालाना कमाई के आंकड़े और अन्य दस्तावेजों को खंगाल रहा है। ऐसे मामलों में तुरंत नोटिस भेजे जा रहे हैं। आइए नीचे खबर में जानते हैं - 

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Income Tax Noice : इनकम टैक्स विभाग ऐसे पकड़ लेता है टैक्सपेयर्स की चालाकी, फिर भेजता है नोटिस

My job alarm - इनकम टैक्स विभाग (Income Tax Department) ने बीते कुछ सालों में अपनी प्रणाली को इतना सख्त और तकनीकी रूप से सक्षम कर दिया है कि अब किसी करदाता के लिए फर्जी दस्तावेज़ों के सहारे टैक्स में छूट पाना आसान नहीं रह गया है। जबसे विभाग ने सालाना आय के आंकड़े (AIS), फॉर्म-26AS, और फॉर्म-16 का आपस में मिलान करना शुरू किया है, तबसे टैक्स में धोखाधड़ी करने वालों पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया है। जो लोग पहले फर्जी रेंट स्लिप लगाकर हजारों रुपये की टैक्स छूट का लाभ उठा लेते थे, अब उनकी हरकतें विभाग की नजर में आ रही हैं। इसके परिणामस्वरूप, विभाग द्वारा ऐसे करदाताओं को लगातार नोटिस भेजे जा रहे हैं, और उनके खिलाफ टैक्स और पेनल्टी भी वसूली जा रही है।

विभाग ने बनाया नया सिस्टम - 

टैक्स एक्सपर्ट्स का मानना है कि विभाग ने जबसे AIS और फॉर्म-26AS के जरिए करदाताओं की आमदनी की जानकारी को एकसाथ जोड़ना शुरू किया है, तबसे फर्जी दस्तावेज़ों के माध्यम से टैक्स छूट पाने के मामलों को पहचानना आसान हो गया है। यह डेटा मिलान प्रक्रिया बहुत प्रभावी सिद्ध हो रही है, जिससे अब कोई करदाता यदि गलत तरीके से हाउस रेंट अलाउंस (HRA) पर छूट का दावा करता है, तो विभाग उसे आसानी से पकड़ लेता है। फॉर्म-26AS में करदाता की पूरी वार्षिक आमदनी का विवरण होता है, जबकि AIS में और भी व्यापक जानकारी होती है, जिसमें बैंक लेनदेन, म्यूचुअल फंड निवेश और अन्य स्रोतों से हुई आमदनी शामिल होती है। दोनों फॉर्म्स का मिलान करने से टैक्स में धोखाधड़ी करना मुश्किल हो जाता है।

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से फर्जीवाड़े पर नज़र

इनकम टैक्स विभाग आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीक का सहारा लेकर फर्जी टैक्स छूट के दावों को पकड़ने में जुटा है। यह AI सिस्टम करदाता के विभिन्न स्रोतों से हुए लेनदेन का विश्लेषण कर अनियमितताओं की पहचान कर लेता है। यदि करदाता ने फर्जी रेंट स्लिप (Fake Rent Slip) के आधार पर HRA छूट का दावा किया है, तो AI तकनीक उस पर तुरंत नजर रखती है और जांच करती है कि यह दावा सही है या नहीं। टैक्स नियमों के तहत, HRA छूट का दावा तभी संभव है जब कंपनी की ओर से करदाता को हाउस रेंट अलाउंस (House Rent Allowance) दिया गया हो। इसके लिए कर्मचारी को कंपनी को डिक्लरेशन देना पड़ता है जिसमें किराये पर रहने की बात और HRA के रूप में मिलने वाली राशि का विवरण होता है।

नियमों के जाल में फंस जाते हैं करदाता

रेंट स्लिप पर टैक्स छूट का दावा करने के लिए कुछ बुनियादी नियमों का पालन करना जरूरी है। सबसे पहला नियम यह है कि HRA प्राप्त होना चाहिए, यानी कंपनी की ओर से हाउस रेंट अलाउंस (House Rent Allowance) मिलना चाहिए। यह अलाउंस तभी मिलता है जब कर्मचारी किराये के मकान में रह रहा हो। इसके लिए कंपनी सालाना आधार पर अपने कर्मचारियों से रेंट स्लिप मांगती है, जिसमें किराया अदा करने का प्रमाण होता है। इस राशि को कर में छूट के लिए अलग से मान्यता मिलती है।

1 लाख से अधिक रेंट वालों को दिखाने होंगे ये डॉक्यूमेंट - 

फर्जी रेंट स्लिप को पकड़ने के लिए इनकम टैक्स विभाग (Income Tax Department) ने कई उपाय किए हैं। यदि किसी का वार्षिक किराया 1 लाख रुपये से अधिक है, तो मकान मालिक का पैन कार्ड देना अनिवार्य होता है। जब रेंट स्लिप लगाई जाती है, तो मकान मालिक के पैन कार्ड के जरिए इस राशि का विवरण सीधे विभाग के AIS में दर्ज हो जाता है। ऐसे में अगर किसी ने बिना किराया चुकाए HRA पर टैक्स छूट का दावा किया है, तो विभाग तुरंत उसे नोटिस भेज देता है। इसके अतिरिक्त, यदि किसी का किराया 1 लाख रुपये से कम है तो भी विभाग इसे पकड़ सकता है, क्योंकि HRA छूट के लिए रेंट एग्रीमेंट अनिवार्य है। इस रेंट एग्रीमेंट में मकान मालिक का नाम, पता, और पैन कार्ड की जानकारी भी होती है।

अगर 1 लाख से कम है किराया तो


अगर किसी का किराया 1 लाख रुपये से कम है तो उसे भी इनकम टैक्‍स विभाग पकड़ लेता है। दरअसल, नियोक्‍ता की ओर से HRA के लिए मांगे गए विवरण में किरायानामा यानी रेंट एग्रीमेंट लगाना जरूरी होता है। रेंट एग्रीमेंट बनवाते समय उसमें मकान मालिक का नाम, पता और आईडी प्रूफ के साथ पैन कार्ड का भी विवरण देना जरूरी होता है। ऐसे में जब आप 1 लाख रुपये से कम के किराये का दावा करते हैं तो भले ही इसके लिए मकान मालिक का पैन न लगाना पड़े, लेकिन रेंट एग्रीमेंट में पहले ही दिए गए पैन के विवरण से भी इस फर्जीवाड़े को पकड़ लिया जाता है।
 

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