My job alarm

High Court ने बताया- कितने साल पुराने मामलों में नोटिस नहीं दे सकता इनकम टैक्स विभाग, टैक्सपेयर्स को मिली बड़ी राहत

Income Tax :  इनकम टैक्स रिटर्न (ITR) में कोई गलती  पाई जाती है, तो इनकम टैक्स डिपार्टमेंट टैक्सपेयर्स को नोटिस (IT Notice) भेजता है।  गलती और नोटिस के बारे में आपकी कार्रवाई के आधार पर इनकम टैक्स डिपार्टमेंट आपके खिलाफ कार्यवाही शुरू करता है।  इसलिए, उन परिस्थितियों को समझना जरूरी है जिनके तहत आपको इनकम टैक्स नोटिस भेजा जा सकता है और नोटिस भेजने के पीछे की वजह को समझना भी बेहद जरूरी है। इनकम टैक्स नोटिस (Income Tax Notice) से जुड़े एक मामले में दिल्ली हाईकोर्ट की ओर से महत्वपूर्ण फैसला सुनाया गया है। इस फैसले से टैक्सपेयर्स को बड़ी राहत मिलेगी। 
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High Court ने बताया-  कितने साल पुराने मामलों में नोटिस नहीं दे सकता इनकम टैक्स विभाग

My job alarm (Income Tax Department) :  आयकर विभाग एक दो नहीं बल्कि सात तरह के अलग-अलग नोटिस भेज सकता है। यह सारे नोटिस आयकर अधिनियम (income tax act) के अलग-अलग सेक्शन के तहत भेजे जाते हैं। हर नोटिस का जवाब देने के लिए भी अलग-अलग समय सीमा तय की गई है। 

 

बतादें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने बीते समय में एक अहम फैसला सुनाया हैं जिसके तहत दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा है कि आयकर विभाग 3 साल से ज्यादा बीत जाने के बाद इनकम टैक्स से जुड़े कोई मामले दोबारा नहीं खोल सकता है। लेकिन यदि कुछ खास मामलों पर बात हो जैसे  (DelhI High Court) कि कथित छुपाई गई इनकम 50 लाख रुपये से ज्यादा हो या फिर टैक्स चोरी का कोई मामला हो तो  3 साल के बाद भी रीअसेसमेंट ऑर्डर जारी किया जा सकता है । इनकम टैक्स डिपार्टमेंट के पास 50 लाख रुपये से ज्यादा आय छुपाने और सीरीयड फ्रॉड मामलों में 10 साल तक का वक्त होता है जिसमें वो रीअसेसमेंट ऑर्डर निकाल सकता है।


10 साल से पुराने टैक्स रीअसेसमेंट ऑर्डर कब निकल सकते हैं-
बता दें कि पहले विभाग के पास ऐसी कार्यवाही शुरू करने के लिए असेसमेंट ईयर के अंत से 10 साल तक का समय दिया जाता था। इस हिसाब से असेसमेंट ईयर 2018-19 के लिए आयकर विभाग के पास 31 मार्च, 2029 तक का समय होता था। लेकिन बजट 2024 ने पुराने मामलों को फिर से शुरू करने की (New tax reassessment rules) समय सीमा को कम कर दिया है। यदि टैक्स चोरी की आंशका हो तो एक्सटेंडेड 10 साल का टाइम पीरियड सिर्फ तभी लागू होना चाहिए।

 

आईटी ऐसेसमेंट के लिए सामान्य टाइमलाइन 3 साल- 
इस मामले पर दिल्ली हाई कोर्ट में एक अहम मामले की सुनवाई के दौरान जस्टिस राजीव शकधर और जस्टिस गिरीश (ITR filing deadline 2024) कथपालिया की बेंच ने कहा कि ऐसेसमेंट ईयर के खत्म होने के तीन साल के बाद 'सामान्य मामलों में' नोटिस जारी करने का कोई इरादा नहीं था। बताया गया कि सिर्फ कुछ ही खास मामलों में रीअसेसमेंट नोटिस 3 साल के बाद भी भेजा जा सकता हैं। जैसे कि छुपाई गई इनकम की रकम 50 लाख रुपये से ज्यादा निकलती हो अथवा आयकर चोरी या फ्रॉड का मामला काफी गंभीर हो इन स्थितियों में ये फैसला लिया जा सकता हैं।


धारा 148 और 148ए के तहत भेजे जाते हैं नोटिस -
सुत्रों से मिली एक रिपोर्ट के अनुसार, इनकम टैक्स डिपार्टमेंट बैंकों, प्रॉपर्टी रजिस्ट्रार और इनवेस्टिगेशन विंग के इनपुट के आधार (Income tax reassessment rules 2024) पर रिएसेसमेंट के केस बनाता है। इनकम टैक्‍स अधिनियम की धारा 148 या 148ए के तहत विभाग रिएसेसमेंट (Section 148 income tax act) के नोटिस भेजता है। कानून टैक्सपेयर्स को अपनी बात रखने का अधिकार देता है।


आयकर अधिनियम की धारा 148 पर कोर्ट ने की ये टिप्पणी -
न्यायालय ने कहा कि अधिनियम की धारा 148 के तहत ऐसी सूचना के संबंध में स्पष्टीकरण, जिस पर कर निर्धारण अधिकारी द्वारा छिपी हुई आय का कर निर्धारण पुनः खोलने के लिए भरोसा किया जा (Government tax rule changes) सकता है, तथा राजस्व लेखा परीक्षा आपत्तियां, पहले से संपन्न कर दिए गए कर निर्धारण को पुनः खोलने के लिए एक वैध आधार है। चूंकि धारा 148 की पुरानी व्यवस्था के तहत इनकम टैक्स ऑफिसर 6 साल तक के पुराने मामलों को खोल सकता है। वहीं 10 साल पुराने मामलों को भी खोला जा सकता है लेकिन इसके लिए टैक्सपेयर की सालाना इनकम 50 लाख रुपये से ज्यादा होनी चाहिए।   

इनकम टैक्स विभाग भेजता है ये 7 तरह के नोट

Section 133A के तहत अकाउंट्स के सर्वे या स्क्रूटिनी के लिए नोटिस जारी किया जाता है।
सेक्शन 131(1A) : आयकर अधिनियम के Section 131(1A) के तहत एक असेसिंग ऑफिसर को अधिकार है कि वह इस बात पर शक कर सके कि टैक्सपेयर्स ने कुछ आय छुपाई है। मतलब आपको ये नोटिस आने पर इस बात के सबूत देने होंगे कि आपने कोई इनकम नहीं छुपाई है।
सेक्शन 142 के तहत दिया जाने वाला नोटिस सबसे कॉमन नोटिस है, जो आयकर रिटर्न फाइल (ITR) नहीं करने पर दिया जाता है। इसके तहत अकाउंट्स की स्क्रूटिनी के लिए कहा जा सकता है। 
Section 143(1) के तहत आने वाला नोटिस तब आता है जब ये पाया जाता है कि टैक्स रिटर्न फाइल करते हुए कोई गलती हुई है या फिर गलत जानकारी दी गई है। ऐसी स्थिति में अतिरिक्त टैक्स डिमांड की जाती है।
धारा 143 (2) : एक टैक्सपेयर्स, जिसने धारा 139 या 142(1) के तहत रिटर्न भरा है। उसे आयकर अधिनियम (income tax act) की धारा 143(2) के तहत नोटिस दिया जा सकता है। अगर मूल्यांकन अधिकारी (एओ) को लगता है कि टैक्सपेयर्स ने कुछ गलत जानकारी शेयर की है या फिर आय से संबंधित कोई जानकारी देने में चूक हुई है तो वो नोटिस (IT Notice) भेज सकता है.

सेक्शन 148 का नोटिस तब आएगा, जब असेसिंग ऑफिसर को लगता है कि आपकी कुछ आय का मूल्यांकन नहीं हुआ है, ऐसी स्थिति में फिर से मूल्यांकन किया जा सकता है।

सेक्शन 156 : अगर टैक्सपेयर्स की ओर से कोई टैक्स, ब्याज, हर्जाना आदि ड्यू रह जाता है तो उसे Section 156 के तहत नोटिस भेजा जाता है। 


 

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