तलाक के मामले में Supreme Court का सुप्रीम फैसला, अब नहीं करना होगा इंतजार
divorce rules and regulations :कम से कम हमारे देश में माना जाता रहा है कि जोड़े तो स्वर्ग में बनते हैं. आमतौर पर वैवाहिक रिश्ते में बंधते वक्त साथी यही महसूस करते हैं लेकिन कई बार रिश्ते में घुटन और ऊब आ जाती है या ऐसे हालात बन जाते हैं विवाहित जोड़े को लगता है कि उनका साथ रहना बहुत मुश्किल है. विवाह की स्थिति में रिश्ते को खत्म करने के लिए कानूनी प्रक्रिया की जरूरत होती है. ये प्रक्रिया तलाक के आवेदन के साथ शुरू होती है। लेकिन तलाक कि प्रक्रिया पूरी होने में काफी समय लगता है। हाल ही में इसपर सुप्रीम कोर्ट ने अपना महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। आइए नीचे खबर में विस्तार से जानते हैं -
My job alarm - भारत में विवाह और तलाक (divorce rules in india) को लेकर क़ानूनी प्रक्रियाएं समय के साथ बदलती रही हैं। हाल के समय में सुप्रीम कोर्ट के एक महत्वपूर्ण फैसले ने तलाक (Divorce Legal Rules) से जुड़ी क़ानूनी प्रक्रिया को आसान बना दिया है। पहले जहां तलाक के लिए पति-पत्नी को लंबी प्रतीक्षा करनी पड़ती थी, वहीं अब यह प्रक्रिया तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि अगर पति-पत्नी के रिश्ते इस हद तक टूट चुके हैं कि उनके ठीक होने की कोई संभावना नहीं है, तो उन्हें तलाक की मंजूरी दी जा सकती है। यह फैसला कई दंपतियों के लिए राहत लेकर आया है, जो लंबी कानूनी प्रक्रिया से गुजरने के बजाय तुरंत तलाक प्राप्त करना चाहते थे।
पुरानी प्रक्रिया
अब तक, तलाक लेने के लिए पति-पत्नी को फैमिली कोर्ट (Family Court) में आवेदन करना पड़ता था, और इसमें एक निश्चित समय अवधि की प्रतीक्षा करनी होती थी। आपसी सहमति से तलाक के मामलों में भी, क़ानून के तहत छह महीने का वेटिंग पीरियड (प्रतीक्षा अवधि) अनिवार्य था। यह अवधि दोनों पक्षों को अपने रिश्ते को सुधारने का अवसर देने के उद्देश्य से रखी गई थी। हालांकि, कई मामलों में, यह अवधि केवल प्रक्रिया को लंबा करने का काम करती थी, खासकर जब दोनों पक्ष तलाक के लिए सहमत होते थे।
सुप्रीम कोर्ट ने इस लंबी प्रतीक्षा अवधि को ख़त्म करने का फैसला किया है। अब, ऐसे मामलों में जहां पति-पत्नी के बीच रिश्ते पूरी तरह टूट चुके हों और दोनों सहमति से तलाक चाहते हों, उन्हें 6 महीने इंतजार नहीं करना पड़ेगा। यह सीधे सुप्रीम कोर्ट से मंजूर किया जा सकता है, और इस फैसले के जरिए तलाक प्रक्रिया को तेज कर दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट का फैसला
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) की पांच जजों की संवैधानिक बेंच द्वारा सुनाया गया, जिसमें जस्टिस एसके कौल, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस एएस ओका, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस जेके माहेश्वरी शामिल थे। इस मामले में, अदालत के सामने कई याचिकाएं दायर की गई थीं, जिनमें यह सवाल उठाया गया था कि क्या आपसी सहमति से तलाक के लिए भी 6 महीने की प्रतीक्षा जरूरी है या नहीं। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि जब दोनों पक्ष आपसी सहमति से तलाक चाहते हैं, तो उन्हें इतने लंबे समय तक इंतजार कराने का कोई तर्कसंगत कारण नहीं है।
29 जून 2016 को यह मामला सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच के पास गया था, और इस पर 29 सितंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रखा गया था। अब, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में स्पष्ट कर दिया है कि वह संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने विशेषाधिकार का उपयोग करते हुए तलाक के मामलों में 6 महीने के वेटिंग पीरियड को समाप्त कर सकती है। अनुच्छेद 142 के तहत, सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वह किसी भी मामले में 'पूर्ण न्याय' के लिए आवश्यक आदेश जारी कर सके।
सुप्रीम कोर्ट का फैंसला
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के इस फैसले का यह मतलब है कि अब आपसी सहमति से तलाक लेने वाले दंपतियों को लंबे समय तक इंतजार नहीं करना पड़ेगा। 1955 के हिंदू मैरिज एक्ट के तहत आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए पहले एक साल की शादी होनी जरूरी थी और उसके बाद 6 महीने का वेटिंग पीरियड अनिवार्य था। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की इस नई व्यवस्था के तहत अगर दोनों पक्ष सहमत हैं और उनके बीच संबंध पूरी तरह टूट चुके हैं, तो उन्हें फैमिली कोर्ट की लंबी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ेगा।