supreme court : प्राइवेट प्रोपर्टी पर सरकार कब्जा कर सकती है या नहीं, सुप्रीम कोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला
Supreme Court Decision - आपने सरकार व प्राइवेट संपत्ति के मालिक के बीच प्रोपर्टी के विवाद खूब सुने होंगे। आमतौर पर ये लंबे समय तक चलते ही रहते हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या सरकार किसी की निजी संपत्ति यानी प्राइवेट प्रोपर्टी पर कब्जा कर सकती है? इसमें यह भी बात सामने आती है कि अगर उस कब्जे से लोगों का हित जुड़ा हो तो क्या होगा। क्या निजी संपत्ति को सरकार के कब्जे से बचाया जा सकता है या नहीं, इस बारे में आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट (supreme court ruling on private property) के इस फैसले को इस खबर में विस्तार से।
My job alarm (supreme court decision) : सरकार जनता के लिए ही कार्य करती है, ऐसे में लोक कल्याण की बात सामने आने पर सरकार की प्रतिबद्धता अधिक हो जाती है। जनहित के लिए सरकार को कई बार निजी संपत्ति पर कब्जे को लेकर भी विचार करना पड़ता है। ऐसे में यह प्रश्न मन में उठता है कि क्या सरकार निजी संपत्ति पर कब्जा (Kya sarkar kisi ki niji property par kabja kar sakti hai) कर सकती है? इस बारे में सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है, जिसे आपके लिए भी जानना व समझना बहुत जरूरी है। बता दें कि फिलहाल देश में संपत्ति बंटवारे के मुद्दे पर उछल रहे राजनीतिक मुद्दे को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने यह टिप्पणी की है।
Suprene Court ने यह की है टिप्पणी
निजी संपत्ति पर सरकार कब्जा कर सकती है या नहीं, इसे लेकर एक मामले की सुनवाई के दौरान सर्वोच्च अदालत (supreme court judgement) ने टिप्पणी की है। इसमें कहा गया है कि लोकहित के लिए किसी निजी संपत्ति पर सरकार (private property par kanoon) की ओर से कब्जा न कर सकने की बात कहना भी खतरनाक ही है। ऐसा इसलिए क्योंकि कानून या संविधान का उद्देश्य तो सामाजिक समरसता व सकारात्मक बदलाव लाने का होता है। ऐसे में यह न किया जाना गलत या खतरनाक ही है। यह टिप्पणी कुछ दिन पूर्व ही चीफ जस्टिस (CJI)डीवाई चंद्रचूड़ (DY Chandrachud) की अगुवाई वाली नौ जजों की बेंच ने की है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से यह दी गई दलील
निजी संपत्ति पर सरकार कब्जा (personal property Rule) कर सकती है या नहीं, इस मुद्दे को लेकर मुंबई के प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (Property Owners Association mumbai) समेत कई अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी गई थी। इसमें कहा गया था कि कानून में प्रावधान का हवाला देकर यानी कानून की आड़ में सरकार निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती है।
बता दें कि कानून में लोकहित के लिए निजी संपत्ति पर सरकार द्वारा कब्जा किया जा सकता है या फिर नहीं, इस बारे में संविधान के अनुच्छेद 39बी और 31सी (Articles 39B and 31C kya hain) में स्पष्ट रूप से वर्णित किया गया है। जानकारों का कहना है कि इन दोनों अनुच्छेदों में हां की बात को शामिल किया गया है। हालांकि इस तरह के प्रावधानों व संवैधानिक योजनाओं की आड़ में सरकार निजी संपत्ति पर कब्जा (Niji sampatti par kabja) नहीं कर सकती, यह गलत कहा जाएगा।
निजी संपत्ति वालों के लिए यह कहा कोर्ट ने
अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme court historical decision) इस मुद्दे पर मंथन में जुटी है कि क्या निजी संपत्तियों को किसी समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है या नहीं? खासकर संविधान के अनुच्छेद 39बी के तहत इस बात को देखा जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने यह भी कहा है कि ये सुझाव देना कि समुदाय के भौतिक संसाधनों का मतलब केवल सार्वजनिक संसाधनों से है और किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति (private property) से नहीं है, तो निजी संपत्ति वालों के लिए अपनी पीठ थपथपाने वाली बात होगी। यानी कानून के अनुसार निजी संपत्ति लोक हित के लिए प्रावधान अनुसार सार्वजनिक दायरे में लाई जा सकती है।
लोकहित के लिए मंथन किया जाना जरूरी
कोर्ट ने कहा है कि जब संविधान बनाया गया था तब इस बात को विशेष रूप से ध्यान में रखा गया था कि समाज को सही दिशा में ले जाने व सकारात्मक रूप से सामाजिक बदलाव लाने के लिए हर पहलू को ध्यान में रखना होगा। इसलिए ये नहीं कहा जा सकता कि किसी की भी निजी संपत्ति को अनुच्छेद 39बी के दायरे में नहीं लाया जा सकता। लोकहित के लिए इस पर पूर्ण रूप से विचार मंथन किया जाना जरूरी हो जाता है। हालांकि ये मामला महाराष्ट्र सरकार द्वारा तय किए गए कानून यानी 1976 के महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (MHADA) कानून से जुड़ा है।
महाराष्ट्र के इस प्राधिकरण से जुड़ा है मामला
महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण कानून में यह प्रावधान है कि सरकार पहले से अधिगृहित की गई किसी इमारत या जमीन का अधिग्रहण कर सकती है। करीब 32 साल पहले 1992 में इस कानून के खिलाफ सर्वप्रथम याचिका दायर की गई थी। तब से ही ये मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है।
इस पर भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जमीन या इमारतों को कब्जे में लेने का सरकार को अधिकार देने वाला महाराष्ट्र का कानून (private property par kanoon)सही है या नहीं, इस पर अलग से फैसला होगा। यह मुद्दा भी अलग ही है, क्योंकि महाराष्ट्र सरकार ने इसे कानून में प्रावधान के तौर पर रखा है। अदालत की ओर से यह बात भी उठाई गई कि क्या एक बार कोई संपत्ति निजी हो जाने पर अनुच्छेद 39बी के दायरे में फिर से ली जा सकती है या नहीं? यह अपने आप में बड़ा सवाल भी है, खासकर निजी संपत्ति वालों के लिए यक्ष प्रश्न है।
समाज हित के लिए ही है अनुच्छेद 39बी का प्रावधान
इस बारे में निष्कर्ष रूप से कोर्ट ने यही कहा है कि समाज हित की जहां बात आती है तो वहां किसी भी संपत्ति को निजी माना गया है। समाजवादी अवधारणा को सर्वोपरि रखकर देखा जाता है, इसमें संपत्ति पर सभी का हक कहा जाता है। लेकिन भारत में संपत्ति आने वाली पीढ़ियों के लिए रखी जाती है। दूसरी ओर संपत्ति को व्यापक समुदाय के लिए ट्रस्ट में रखा भी जाता है और ऐसा करना सर्वहित विकास की असली सोच या अवधारणा है। बेंच ने विशेष रूप से इस बारे में स्पष्ट करते हुए कहा है कि संविधान में अनुच्छेद 39बी (Article 39B) समाज को सही दिशा देने व सकारात्मक सामाजिक बदलाव लाने के लिए जोड़ा गया था। यह निजी संपत्ति से ऊपर है, जो लोकहित के लिए सरकार द्वारा अधिग्रहीत या कब्जा किए जाने के अंतर्गत है।
32 साल से चला आ रहा है यह मामला
इसलिए यह कहना सही नहीं कि कोई संपत्ति निजी है तो उस पर अनुच्छेद 39बी (Article 39B) लागू नहीं होगा। वास्तव में अनुच्छेद 39बी सरकार के लिए लोगों की भलाई के लिए संसाधनों पर सही स्वामित्व सुनिश्चित करने के लिए ही है। यहां पर इस बात से सभी अवगत कराना जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की 9 जजों की बेंच मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA, Mumbai)की मुख्य याचिका पर सुनवाई तो कर ही रही है, इसके साथ ही 16 अन्य याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। करीब 32 साल से यानी वर्ष 1992 से इस याचिका पर फैसला लंबित है। 2002 तक इस मामले में कई सुनवाई होने के बाद इसे नौ जजों की बेंच को ट्रांसफर किया था।