Supreme Court Decision : पिता की संपत्ति में औलाद के अधिकार पर सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, हाईकोर्ट ने खरीज कर दी थी अपील
Property Rights : हमारे देश में संयुक्त परिवार की संस्कृति है। यहां बड़े-बड़े परिवार कई पीढ़ियों से साथ रहते आए हैं। हालांकि, अब धीरे-धीरे वक्त बदल रहा है। बड़े संयुक्त परिवार की जगह अब छोटी सिंगल फैमिली ही नजर आती है। ऐसे में प्रॉपर्टी को लेकर अक्सर विवाद (property dispute) देखने को मिलता है। प्रोपर्टी को लेकर झगड़ा तकरीबन हर दूसरे तीसरे परिवार में देखने को मिलता है। किसी-किसी जगह यह बगैर कानून के हस्तक्षेप के हल हो जाता है तो कहीं बात कोर्ट कचहरी तक जा पहुंचती है।
My job alarm (ब्यूरो) : संपत्ति पर कब्जे की मंशा बहुत से लोगों को इस कदर अंधा कर देती है कि बाप-बेटे के रिश्ते को भी खराब हो जाते हैं। वहीं बहुत से उत्तराधिकारी उनके कानूनी हिस्से से ही वंचित रह जाते हैं। प्रोपर्टी से जुड़े एक ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision on property rights) की ओर से महत्वपूर्ण फैसला दिया गया है।
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने हाल ही में संपत्ति के अधिकारों से जुड़े एक महत्वपूर्ण मामले में ऐतिहासिक फैसला सुनाया। इस फैसले में, अदालत ने कहा कि शून्य और अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी पैतृक संपत्ति (ancestral property) में हिस्सेदारी का पूरा हक है। अदालत ने स्पष्ट किया कि ऐसे बच्चों को वैध माना जाएगा, और वे संपत्ति (Property Rights) में अपनी हिस्सेदारी के लिए वैध वारिस माने जाएंगे। यह फैसला समान पूर्वज के विस्तारित परिवार के सिद्धांत पर आधारित है, जहां अदालत ने कहा कि यदि समान पूर्वज ने बच्चों को स्वीकार किया है, तो उन्हें संपत्ति का वही अधिकार मिलेगा जो वैध विवाह से पैदा हुए बच्चों को मिलता है।
जानिये पूरा मामला
यह मामला मुथुसामी गौंडर नामक व्यक्ति से जुड़ा था, जिनकी तीन शादियां थी। इनमें से दो शादियाँ अमान्य घोषित कर दी गई थीं। मुथुसामी गौंडर के कुल पांच बच्चे थे—चार बेटे और एक बेटी। इन बच्चों में से कुछ वैध विवाह से पैदा हुए थे, जबकि कुछ अमान्य विवाह से। जब संपत्ति के बंटवारे का मुद्दा उठा, तो वैध विवाह से पैदा हुए एक पुत्र ने ट्रायल कोर्ट में संपत्ति के विभाजन का मुकदमा दायर किया। इस मुकदमे में अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी प्रतिवादी के रूप में शामिल किया गया था।
ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट का फैसला
ट्रायल कोर्ट (Trial Court) ने वैध विवाह से पैदा हुए बच्चों के पक्ष में फैसला सुनाया और कहा कि केवल उन्हें ही पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलेगा। इस फैसले को अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों ने चुनौती दी और मद्रास हाईकोर्ट (Madras High Court) में अपील की। लेकिन हाईकोर्ट ने उनकी अपील को खारिज कर दिया, और ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा। इसके बाद, अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक फैसला
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) की जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की पीठ ने मद्रास हाईकोर्ट के फैसले को पलटते हुए कहा कि अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को भी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी का अधिकार है। अदालत ने स्पष्ट किया कि अगर समान पूर्वज (मुथुसामी गौंडर) ने इन बच्चों को अपनी संतान के रूप में स्वीकार किया है, तो उन्हें पैतृक संपत्ति (ancestral property) में बराबरी का अधिकार मिलेगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि किसी भी शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे को वैध वारिस के रूप में देखा जाएगा, और उसे संपत्ति में हिस्सेदारी देने से इनकार करना न केवल कानून के विपरीत है, बल्कि अस्थिर भी है।