Supreme Court Decision : क्या सरकार किसी की भी निजी संपत्ति का कर सकती है अधिग्रहण, SC की 9 जजों वाली बेंच ने दिया अहम फैसला
Supreme Court Decision : सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारों को संविधान के तहत आम भलाई के लिए प्राइवेट प्रॉपर्टी वाले सभी संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है। कोर्ट की ओर से आए इस फैसले को विस्तार से जानने के लिए खबर को पूरा पढ़ लें...
My job alarm - सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि सरकारों को संविधान के तहत आम भलाई के लिए प्राइवेट प्रॉपर्टी वाले सभी संसाधनों को अपने कब्जे में लेने का अधिकार नहीं है। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की 9 जजों की बेंच ने 7:2 के बहुमत से यह निर्णय लिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि सरकार कुछ मामलों में प्राइवेट संपत्तियों (private properties) पर दावा कर सकती है, लेकिन सभी निजी स्वामित्व संसाधनों को जबरदस्ती कब्जे में लेना उचित नहीं है।
जस्टिस कृष्णा अय्यर की बेंच का फैसला खारिज-
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अगुवाई में संवैधानिक बेंच ने जस्टिस कृष्णा अय्यर की बेंच के फैसले को खारिज कर दिया। अय्यर की बेंच ने कहा था कि सभी निजी संसाधनों को अनुच्छेद-39 (बी) के तहत सरकारों द्वारा अधिगृहीत किया जा सकता है, जो अब अमान्य हुआ।
सुप्रीम कोर्ट के सामने क्या था सवाल?
सुप्रीम कोर्ट के सामने एक महत्वपूर्ण कानूनी प्रश्न था, जिसमें संविधान की अनुच्छेद-39 (बी) के तहत यह तय करना था कि क्या निजी संपत्तियाँ समुदाय का भौतिक संसाधन मानी जा सकती हैं। इसके तहत यह सवाल था कि क्या सरकार आम जनता की भलाई के लिए इन निजी संपत्तियों को अधिग्रहित करके वितरण कर सकती है। यह मुद्दा संवैधानिक बेंच के लिए महत्वपूर्ण था, क्योंकि इससे व्यक्तिगत संपत्ति के अधिकारों और सामाजिक कल्याण के बीच संतुलन बनाना आवश्यक था।
पहले के फैसले में समाजवादी सोच को तरजीह-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) ने महत्वपूर्ण निर्णय देते हुए सरकार को आम भलाई के लिए प्राइवेट संपत्तियों के अधिग्रहण की सख्त सीमाएं निर्धारित की। पहले के फैसलों को पलटते हुए न्यायालय ने समाजवादी दृष्टिकोण को नकारा। जस्टिस बीवी नागरत्ना ने 7 जजों के फैसले पर आंशिक असहमति जताई, जबकि जस्टिस सुधांशु धुलिया ने सभी पहलुओं पर असहमति व्यक्त की। यह निर्णय संपत्ति के अधिकारों की रक्षा में एक महत्वपूर्ण बदलाव का संकेत है।
सुप्रीम कोर्ट में थीं 16 याचिकाएं-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court order) में कुल 16 याचिकाएं दायर की गईं, जिनमें 1992 में मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन (पीओए) द्वारा दायर मुख्य याचिका शामिल है। पीओए ने 1986 में जोड़े गए महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण (म्हाडा) अधिनियम के अध्याय 8-ए का विरोध किया। यह अध्याय सरकार को उपकरित भवनों और भूमि का अधिग्रहण करने का अधिकार देता है, यदि वहां रहने वाले 70 प्रतिशत लोग पुनर्स्थापन हेतु अनुरोध करें।
समकालीन व्याख्या की जरूरत बताई थी सुप्रीम कोर्ट ने-
सुप्रीम कोर्ट (Supreme court decision) ने एक मई को मामले में सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया था। सुनवाई के दौरान मुख्य कानूनी सवाल पर लंबी बहस चली कि क्या प्राइवेट संपत्तियों को संविधान के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है? क्या ऐसी संपत्तियों को राज्य अथॉरिटी कब्जे में ले सकता है?
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच ने मामले में यह कानूनी सवाल था कि क्या प्राइवेट संपत्तियों को संविधान के अनुच्छेद-39 बी के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है और क्या राज्य इसे अधिग्रहण कर इसे सार्वजनिक कल्याण के लिए इस्तेमाल हो सकता है?
मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी कि कोई भी प्राइवेट संपत्ति, समुदाय का भौतिक संसाधन नहीं है और प्रत्येक निजी संपत्ति , समुदाय का भौतिक संसाधन है और ये दोनों ही अलग दृष्टिकोण हैं। कोर्ट ने कहा था कि प्राइवेटाइजेशन और राष्ट्रीय हितों (Privatization and national interests) को ध्यान में रखते हुए इसकी समकालीन व्याख्या की जरूरत है।
