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supreme court decision: लिव इन रिलेशनशीप में रहने वालों को मिले 5 अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने लगाई मुहर

Live-in Relationships in India: लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाले लोगों के अधिकारों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इन बातों पर मुहर लगा दी हैं। अक्सर लोगों को जानकारी का अभाव होता हैं कि लिव-इन-रिलेशनशिप में रहने वाली महिला औऱ बच्चों को क्या अधिकार मिलते हैं? तो आइए जानते हैं लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को दिए जाने वाले अधिकारों के बारे में विस्तार से...
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supreme court decision: लिव इन रिलेशनशीप में रहने वालों को मिले 5 अधिकार

My job alarm - (Supreme Court) हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में लिव-इन-रिलेशनशिप को लेकर एक मामला सामने आया हैं इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई के दौरान एक अहम फैसला सुनाया हैं। अगर कोई पुरूष और महिला लंबे समय तक पति पत्नी की तरह एक साथ रहते हैं तो दोनों में शादी का शक होने लगता हैं। लेकिन अगर साथ साथ रहते हुए बिना शादी के उनके बच्चे हो जाएं तो क्या इस रिश्ते (supreme court verdict) से पैदा होने वाले बच्चों को भी पैतृक संपत्ति पर हक मिलेगा? यह मामला केरल हाईकोर्ट से था। सन् 2009 में केरल हाईकोर्ट ने इस मामले में बच्चे को पैतृक संपत्ति पर अधिकार देने से मना कर दिया था।

घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत, लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को सुरक्षा (live in relation) का अधिकार है। इसके तहत, महिलाओं को ये अधिकार मिलते हैं -

 

लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला साथी और इस दौरान होने वाले बच्चों के क्या अधिकार होते हैं?
लिव-इन-रिलेशन और इन संबंधों से पैदा होने वाले बच्चों को भारतीय न्यायपालिका ने सुरक्षा प्रदान की है। लिव इन पार्टनर से संबंध टूटने की स्थिति में लिव इन में रहने वाली महिला को यह अधिकार है कि इस दौरान पैदा हुए बच्चे को अपने साथ रखने का दावा कर सके। इसके लिए महिला कोर्ट की (ancestral property rights) शरण में जा सकती है और वहां अपना दावा रख सकती है। महिला के अधिकारों को भी बरकरार रखने के निर्देश दिए गए हैं। इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान यह हक दिया गया और कहा गया कि लिव-इन-रिलेशन से पैदा हुए बच्चे को भी पैतृक संपत्ति पर हक देने से रोका नहीं जा सकता है।

 

क्या लिव इन रिलेशनशिप में भरण-पोषण का अधिकार है?
लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं को धारा 125 Cr. PC के तहत भरण-पोषण का दावा करने का अधिकार है। 
प्रश्न: क्या लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिला घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005 के तहत अधिकार क्षेत्र का उपयोग कर सकती है? 
उत्तर: दम्पति को समाज के सामने स्वयं को पति-पत्नी के समान प्रस्तुत करना चाहिए। लिव-इन पार्टनर का एक दूसरे की (sc verdict on live in relationship) संपत्ति में अधिकार या उत्तराधिकार नहीं होता। इस धारा के तहत कानून पॉलिमेनी का भी अधिकार देता है।

क्या CRPC की धारा-125 लिव इन रिलेशनशिप की महिलाओं पर लागू होती है ?
1. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सीआरपीसी की धारा 125 हर धर्म की महिलाओं के लिए लागू होती है। 
2. तलाकशुदा मुस्लिम महिला भी सीआरपीसी की धारा 125 के तहत अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता मांग सकती है। 
3. अगर पत्नी किसी दूसरे पार्टनर के साथ रह रही है, या बिना किसी सही कारण के अपने पति के साथ रहने से मना कर दे, या पति-पत्नी आपसी सहमति से अलग रह रहे हैं, तो गुजारा भत्ता की मांग नहीं की जा सकती। 
4. कर्नाटक हाईकोर्ट के मुताबिक, सीआरपीसी की धारा 125 के तहत पत्नी को पति से अलग रहने के लिए पर्याप्त कारण साबित करने की ज़रूरत नहीं होती। 
एक महिला को लिव इन रिलेशनशिप में इस अधिकार के पीछे तर्क सुनिश्चित करना है कि एक पुरुष उस विवाह की जिम्मेदारियों कानून खामियों का लाभ नहीं उठाता है।

 

 

लिव इन रिलेशनशिप में संपत्ति विरासत में महिलाओं का क्या अधिकार है ?
धन्नूलाल वर्सेज गणेशराम केस में अदालत ने संपत्ति विवाद को निपटाने के लिए अपने लिव इन पार्टनर की मृत्यु के बाद उसके साथ लिव-इन में रह रही महिला साथी की संपत्ति के अधिकार में पुष्टि की है। इस मामले में परिवार के सदस्यों ने दलील दी है कि उसके दादा पिछले 20 साल से उस महिला (live in relationship in India) के साथ रह रहे थे। उनके दादा ने उस महिला से शादी नहीं की  थी इसलिए वह उनकी मृत्यु के बाद संपत्ति की अधिकारी नहीं थीं। कोर्ट ने इसके विपरीत फैसला दिया और कहां कि जहां पुरुष और महिला एक पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे थे उस स्थिति में कानून मानता है कि वह एक वैध विवाह में एक साथ रह रहे हैं। 


लिव इन रिलेशनशिप से पैदा हुए बच्चों की कानूनी स्थिति क्या है?
भारत जैसे पारंपरिक समाज में लिव-इन रिलेशनशिप को अभी भी वर्जित माना जाता है और विवाह के बिना पैदा हुए बच्चे को नाजायज संतान माना जाता है। भारत में लगभग सभी धार्मिक प्रथाओं में, पारंपरिक रीति-रिवाजों में नाजायज बच्चों को कोई अधिकार या कर्तव्य नहीं दिए जाते हैं। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कोई पुरुष और महिला काफी सालों तक साथ रहते हैं तो एविडेंस एक्ट की धारा 114 के तहत इसे शादी माना जाएगा. इसलिए उनसे पैदा हुए बच्चों को भी वैध माना जाएगा और पैतृक संपत्ति में हिस्सा प्राप्त करने का अधिकार मिलेगा। 
 

 

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