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Supreme Court : परिवार का ये सदस्य बिना किसी से पूछे बेच सकता है सारी प्रोपर्टी, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

Supreme Court :  हमारे देश में संयुक्त परिवार की संस्कृति है। यहां बड़े-बड़े परिवार कई पीढ़ियों से एक साथ ही रहते आए हैं या फिर यू कहें की रह रहे हैं। हालांकि, अब धीरे धीरे समय बदल रहा है। बड़े संयुक्त परिवार की जगह अब छोटी सिंगल फैमिली ही नजर आती है। ऐसे में प्रॉपर्टी को लेकर तो अक्सर विवाद (property dispute) होता ही है। हर तीसरे परिवार में प्रोपर्टी को लेकर झगड़ा देखने को मिलता है। किसी-किसी जगह यह बगैर कानूनी हस्तक्षेप के हल हो जाता है तो कहीं बात कोर्ट कचहरी तक जा पहुंचती है। संपत्ति पर कब्जे की मंशा बहुत से लोगों को इस कदर अंधा कर देती है कि वे बाप बेटे तक के रिश्ते खराब हो जाते हैं। आज देश की अदालतों में प्रोपर्टी विवाद से जुड़े लाखों मामले है। प्रोपर्टी विवाद के एक ऐसे ही मामले में सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision on property rights) की ओर से महत्वपूर्ण फैसला दिया गया है।

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Supreme Court : परिवार का ये सदस्य बिना किसी से पूछे बेच सकता है सारी प्रोपर्टी, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

My job alarm (ब्यूरो) - हमारे सुप्रीम कोर्ट की ओर से प्रोपर्टी बेचने के समझ में जजमेंट दिया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने साफ बताया है प्रोपर्टी बेचने का परिवार के किस सदस्य को अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने जॉइंट फैमिली में प्रोपर्टी को लेकर एक अहम फैसला सुनाया है। गैर-विभाजित हिंदू परिवार का मुखिया या कर्ता ही सब निर्णय लेता है।

अगर उस परिवार का ‘कर्ता’ चाहे तो वह जॉइंट प्रॉपर्टी को बेच या गिरवी रख सकता है। इसके लिए उसे परिवार के किसी भी सदस्य से अनुमति लेने की भी आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने कहा है कि अगर हिस्सेदार कोई नाबालिग है तब भी कर्ता बिना परमिशन लिए प्रॉपर्टी के संबंध में फैसला ले सकता है।


इस फैसले के बारे में जानने के बाद आपके मन में जरूर सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर ये कर्ता कौन होता (who is karta in HUF) है, जिसे कोर्ट ने हिंदू अन-डिवाइडेड फैमिली के मामले में इतने अधिकार दे (rights of karta in joint family) दिए। बता दें कि गैर-विभाजित हिंदू परिवार में यह अधिकार जन्म से प्राप्त होता है। परिवार का सबसे वरिष्ठ पुरुष कर्ता होता है। अगर सबसे वरिष्ठ पुरुष की मौत हो जाती है तो उसके बाद जो सबसे सीनियर होता है, वह अपने आप कर्ता बन जाता है। हालांकि, कुछ मामलों में इसे विल (property will rules) द्वारा घोषित किया जाता है।


कर्ता के पास होते हैं ये खास अधिकार
ऊपर दी गई जानकारी के अनुसार कर्ता के पास ये अधिकार जन्म से आते है लेकिन कुछ मामलों में यह जन्म सिद्ध अधिकार नहीं रह जाता है। आपको बता दें कि ऐसा तब होता है जब मौजूदा कर्ता अपने बाद किसी और को खुद से ही कर्ता के लिए नॉमिनेट कर देता है। ऐसा वह अपनी विल में कर सकता है। इसके अलावा अगर परिवार चाहे तो वह सर्वसम्मति किसी एक को कर्ता घोषित कर सकता है। कई बार कोर्ट भी किसी हिंदू कानून के आधार पर कर्ता नियुक्त करता है। हालांकि, ऐसे मामले में बहुत कम होते हैं।


सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाला क्या था ये मामला?
प्रॉपर्टी को लेकर सुप्रीम कोर्ट के सामने जो मामला (supreme court rule about property) था उस पर पहले ही मद्रास हाईकोर्ट फैसला दे चुका था। यह मामला 1996 का था। मामले के तहत याचिकाकर्ता का ये दावा था कि उनके पिता द्वारा एक प्रॉपर्टी को गिरवी रखा गया था जो कि जॉइंट फैमिली यानि कि गैर-विभाजित हिंदू परिवार की प्रॉपर्टी थी। हालांकि, याचिकाकर्ता ने यह भी बताया कि उनके पिता परिवार के कर्ता थे। 


इस पर मद्रास हाईकोर्ट ने भी यह फैसला दिया था कि कर्ता प्रॉपर्टी को लेकर फैसले ले सकता ( property rule hindu undivided family) है और इसके लिए किसी से पूछने की जरूरत नहीं। सुप्रीम कोर्ट ने भी इस मामले में मद्रास हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ जाने से मना कर दिया।


गैर-कानूनी होने पर किया जा सकता है ये दावा-
मामले पर कोर्ट का कहना है कि ऐसे कर्ता द्वारा किसी प्रॉपर्टी गिरवी (mortgage property) रखे जाने के मामले में कोपर्सिनर (समान उत्तराधिकारी/हमवारिस) तभी दावा कर सकता है जब कुछ गैर-कानूनी हुआ हो। कोर्ट ने कहा कि मौजूदा मामले में ऐसा कुछ नहीं दिखाई देता। 

बता दें कि परिवार के 2 हिस्से होते हैं। पहला सदस्य, इसमें परिवार का हर व्यक्ति शामिल होता है। बाप, बेटा, बहन, मां आदि। वहीं, कोपर्सिनर (who is Coopersiner) में केवल पुरुष सदस्यों को ही गिना जाता है। इसमें जैसा परदादा, दादा, पिता व पुत्र शामिल होते है।

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