Supreme Court : सरकारी कर्मचारियों पर मुकादमा चलाने के मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय
Decision of Supreme Court : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की ओर से एक ताजा मामला सामने आ रहा है। सरकारी कर्मचारियों पर चले एक मुकदमें पर सुप्रीम कोर्ट की ओर से हाल ही में एक बड़ा फैसला लिया गया है। आइए नीचे खबर में जान लें कि क्या है ये पूरा मामला और सुप्रीम कोर्ट का इस पर क्या रूख है।
My job alarm (Supreme court news) : सुप्रीम कोर्ट से आए दिन कुछ न कुछ मामले सामने आते रहते है। आज जिस मामलें के बारे में हम बात करने वाले है वो सरकारी अधिकारियों के अपराध को लेकर है। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट से ये मामला सामने आ रहा है कि कोर्ट ने रिश्वत लेने सहित आपराधिक मामलों में सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा (Supreme court on corruption) चलाने की अनुमति देने के लिए 4 महीने के सांविधिक प्रावधान (statutory provision in India) को अनिवार्य करार देते हुए कहा कि भ्रष्ट व्यक्ति को अभियोजित करने में देर होने पर ‘दंडित नहीं किये जाने की संस्कृति’ पनपती है।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में ये कहा कि इस विलंब के लिए सक्षम प्राधिकार जिम्मेदार होगा। उस पर केंद्रीय सतर्कता आयोग (Central Vigilance Commission) द्वारा सीवीसी अधिनियम के तहत प्रशासनिक कार्रवाई की जाए।
सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज
सरकारी अधिकारियों पर मुकदमा चलाने के मामले (supreme court decision on govt employee) में जस्टिस बी आर गवई और न्यायमूर्ति पी एस नरसिम्ह की पीठ ने 30 पृष्ठों के अपने फैसले में कहा कि मुकदमा चलाने की अनुमति देने में विलंब को हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है, लेकिन यहां ये जान लेना बेहद जरूरी है कि यह सरकारी अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक मामलों (criminal cases in supreme court) को रद्द करने का आधार नहीं होगा। न्यायालय ने कहा कि अनुमति देने वाला प्राधिकार अवश्य ही यह ध्यान में रखे कि लोग कानून का शासन में विश्वास करते हैं। कानून का शासन न्याय प्रशासन में यहां दांव पर लगा हुआ है।
जांच के लिए दिया 3 महीन का समय-
कर्मचारियों के इस मामले पर दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 197 और भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम (Prevention of Corruption Act in India) की धारा 97 के तहत आपराधिक मामलों में लोक सेवकों को अभियोजित करने के लिए केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (Central Bureau of Investigation) तथा अन्य जांच एजेंसियों को 3 महीने की अवधि उपलब्ध है, जिसमें कानूनी परामर्श के लिए एक महीने का विस्तार किया गया है। जस्टिस की पीठ ने विजय राजामोहन नाम के एक सरकारी अधिकारी की मद्रास उच्च न्यायालय के फैसले (high court news) के खिलाफ अपील पर सुनवाई करते हुए यह कहा था।
भ्रष्ट व्यक्ति पर मुकदमा चलाने में देरी नही है ठीक-
जस्टिस की पीठ ने इस मामले पर कहा कि, ‘अनुमति के अनुरोध पर विचार करने में विलंब कर अनुमति देने वाला प्राधिकार न्यायिक पड़ताल (authority judicial investigation on sc case) को अनुपयोगी बनाता है, इससे भ्रष्ट अधिकारी के खिलाफ आरोपों के निर्धारण की प्रक्रिया बाधित होती है।
’ इतना ही नही, अदालत ने ये कहा, ‘भ्रष्ट व्यक्ति पर मुकदमा चलाने में देर करने से दंडित नहीं (case against corrupt person) किये जाने की संस्कृति पनपती है। यह सार्वजनिक जीवन में भ्रष्टाचार की मौजूदगी के प्रति एक प्रणालीगत आत्मसमर्पण है। इस तरह की अकर्मण्यता से भविष्य की पीढ़ी भ्रष्टाचार को जीवन जीने के तरीका का हिस्सा मानते हुए इसके प्रति अभ्यस्त हो जाएगी।’