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Supreme Court : पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Daughter property rights : भारत देश में पुराने समय से ही बेटियों को उनके अधिकार से वंचित रखा जाता है। खासकर प्रोपर्टी के मामले में तो उन्हे बोलने तक का अधिकार नही दिया जाता था। लेकिन आज हम आपको ऐसे ही एक मामले पर सुप्रीम कोर्ट के आए फैसले से अवगत कराना चाहते है। आइए जान लें कि पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट का क्या है फैसला...
 
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Supreme Court : पिता की संपत्ति में बेटी के अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला

My job alarm - भारत में अकसर प्रोपर्टी पर विवाद को लेकर मामले सामने आते रहते है। खासकर बेटियों और लड़कियों को उनके अधिकार दिए ही नही जाते है। सबसे पहली बात तो ये है कि पहले महिलाओं को ये ही नही पता होता था कि उनका प्रोपर्टी में अधिकार (property rights) होता भी है या नही। महिलाओं में अपने संविधानसम्मत या कानूनसम्मत अधिकारों (constitutional or legal rights of women) को लेकर जागरूक्ता ही नही है।

इन घरेलू महिलाओं को अधिकारों के मामले में घर के पुरुषों द्वारा जो बता दिया जाता, जो दे दिया जाता, वह उसे स्वीकार लेती थी। वैसे लंबा समय भी नहीं हुआ है जब महिलाओं को उनके वाजिब हक दर्ज हुए, उन्हें बेटों के बराबर ही सेवाओं, सुविधाओं व वस्तुओं का हकदार माना गया। भारत में बेटी और बेटे दोनों को माता-पिता की संपत्ति में समान अधिकार (Equal rights in parents' property) है।


 हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम की अनुसूची के तहत, बेटी और बेटा दोनों प्रथम श्रेणी (Class I Heirs) के उत्तराधिकारी हैं और उन्हें समान हिस्सेदारी मिलती है। अब सवाल ये भी उठा है कि महिलाओं का शादी के बाद प्रोपर्टी पर (Women's right to property after marriage) क्या हक रह जाता है। ऐसे में आइए जान लें कि शादी हो जाने के बाद बेटी के संपत्ति में क्या अधिकार हैं, क्या बेटी को पिता की संपत्ति या वसीयत से बेदखल किया जा सकता है, दादा दादी यानी पैतृक संपत्ति (rights on ancestral property) पर उसके क्या अधिकार हैं, बेटा या बेटी का हिस्सा कैसे तय होता है, पिता ने वसीयत की ही नहीं तो क्या होगा। ऐसे ही सवालों के जवाब जानने के लिए इस खबर को पूरा पढ़ें।


शादी के बाद बेटी के क्या है संपत्ति में अधिकार…
इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट (supreme court) में प्रैक्टिसरत वकील और नेशनल कमिशन फॉर वीमन (NCW) की पूर्व सदस्य डॉक्टर चारू वलीखन्ना का कहना है कि आमतौर पर समाज में ये मान लिया जाता है कि अगर बेटी की शादी हो गई और उसे दहेज या स्त्रीधन के तौर पर सामान आदि इत्यादि दिया गया है तो वह अपने मायके (पिता) की संपत्ति में हक नहीं मांग (property me haqq) सकती है।

जबकि कानून यह नहीं मानता है और पिता की संपत्ति में बेटे को जितना अधिकार है, उतना ही अधिकार बेटी को भी है। अगर बेटी की शादी भी हो जाती है तो न तो उसके और न ही बेटे के अधिकार शादी पर खत्म होते हैं। बेटा और बेटी दोनों ही, प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारी बने रहेंगे।


क्या प्रोपर्टी से बेटा या बेटी को किया जा सकता है बेदखल?
वसीयत ही बना दी जाए तो अलग बात है लेकिन अगर कोई वसीयत तैयार नही की जाती है तो बेटे और बेटी को संपत्ति पर एक समान अधिकार (property rights in India) ही होता है। अगर वसीयत है तो वसीयतकर्ता को पूरा अधिकार है कि वह जिसे चाहे संपत्ति की वसीयत (bequest of property) कर दे। ऐसे में यह भी होता देखा गया है कि माता-पिता संपत्ति पर बेटे को अधिकार (rights in parents property) दे देते हैं और बेटियों को विरासत से बेदखल कर देते/कर सकते हैं। 


पैतृक संपत्ति और स्वयं अर्जित प्रोपर्टी में अधिकार?
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम 2005 में आने वाले ‘महिलाओं के संपत्ति के उत्तराधिकार’ के तहत अधिकारों में पहले मुकाबले कुछ महत्वपूर्ण बदलाव किए गए। इस अधिनियम के तहत धारा 6 के प्रावधानों में संशोधन किया गया जिससे महिलाएं बेटों के समान समान रूप से सहदायिक अधिकारों (co-parcenary rights) की हकदार थीं। वे अपने पिता की पैतृक और स्व-कब्जे (self acquired property) वाली संपत्ति के बंटवारे और कब्जे का दावा कर सकती हैं। 
जानकारी के अनुसार इससे पहले एक महिला को संयुक्त परिवार की संपत्ति (joint family property) में रहने का अधिकार था, लेकिन बंटवारा मांगने का अधिकार नहीं था, जिसे केवल पुरुष सदस्य ही मांग सकते थे। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में 2005 में संशोधन से पहले, एक बेटी सहदायिक नहीं थी और इसलिए, वह विभाजन का दावा करने की हकदार नहीं थी। अब यह बदल गया गया है। 


बिना वसीयत पिता के देहांत पर क्या है प्रावधान?
ज्यादातार लोग अपनी उम्र के साथ ही अपनी वसीयत लिख कर रख देते है ताकि आने वाले समय में कोई परेशानी न हो। क्योंकि एक पिता का वसीयत (property will) लिखकर गुजर जाना, और बिना वसीयत किए गुजर जाना, कानून में ये दो अलग अलग परिस्थितियां हैं।

वसीयत कर दी गई है तो इसी हिसाब से हक मिलेगा लेकिन अगर नहीं की थी और मौत हो गई थी, घर के मुखिया यानी पिता या पति का बिना वसीयत किए निधन हो जाता है तो विरासत की संपूर्ण हकदार (full entitlement to inheritance) पत्नी होती है। पत्नी जो अब विधवा हो चुकी है। अब यह पत्नी पर निर्भर करता है वह इस संपत्ति पर किसे क्या हक देती है। इसे दान न समझा जाए।

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