My job alarm

चेक बाउंस मामले में आया Supreme Court का बड़ा निर्णय, कहा- इन लोगों को नहीं ठहरा सकते दोषी

supreme court decision on cheque bounce: अधिकत्तर लोग कैश में लेनदेन की बजाय चेक से पेमेंट करना ठीक समझते हैं, जैसे-जैसे चेक का इस्तेमाल बढ़ता जा रहा है वैसे ही चेक बाउंस के मामले भी हर रोज नए-नए सामने आ रहे हैं, चेक बाउंस (cheque bounce case) एक बड़ी समस्या है जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अब एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है और बताया है कि चेक बाउंस होने पर किन लोगों को दोषी नहीं ठहरा सकते, आइए नीचे खबर में  सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बारे में विस्तार से जानते हैं।

 | 
Supreme Court : चेक बाउंस मामले में सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला

My job alarm (ब्यूरो) : सुप्रीम कोर्ट ने चेक बाउंस के मामले में ने महत्वपूर्ण फैसला देते हुए कहा है कि चेक बाउंस के लिए केवल इसलिए किसी व्यक्ति को दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। क्योंकि वह व्यक्ति उस फर्म में पार्टनर था और लोन के लिए गारंटर बना था। 
शीर्ष अदालत (Supreme Court) ने कहा एनआई अधिनियम (Negotiable Instrument Act) की धारा 141 के तहत किसी व्यक्ति पर केवल इसलिए कार्रवाई नहीं की जा सकती है क्योंकि साझेदारी अधिनियम (Partnership Act) के तहत दायित्व भागीदार पर पड़ता है। 
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस संजीव खन्ना की खंडपीठ ने कहा, कि जब तक कंपनी या फर्म अपराध नहीं करती, तब तक धारा 141 के तहत जवाबदेही तय नहीं की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, जब तक कंपनी या फर्म ने मुख्य आरोपी के रूप में अपराध नहीं किया है, व्यक्ति उत्तरदायी नहीं होंगे और उन्हें प्रतिपक्षी रूप से उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।

 

कोर्ट में 34 लाख से ज्यादा चेक बाउंस के मामले


सुप्रीम कोर्ट एक फर्म द्वारा जारी किए गए चेक के बाउंस (cheque bounce case) होने पर अपीलकर्ता की दोषी ठहराये जाने को चुनौती देने वाली एक याचिका पर फैसला कर रही थी जिसमें वो एक भागीदार था। चेक पर किसी अन्य साथी द्वारा साइन किए गए थे।  शिकायत में फर्म को आरोपी नहीं बनाया गया। 
आपको बता दें चेक बाउंस (bank cheque bounce ) एक बड़ी समस्या है और देश की अदालतों में 34 लाख से ज्यादा चेक बाउंस के मामले लंबित हैं। जिसमें से 7.47 चेक बाउंस के मामले तो केवल पिछले 5 महीनों में सामने आये हैं।  

आपको ये पता होना चाहिए चेक बाउंस (Check Bounce Rules) होने को एक अपराध माना जाता है। चेक बाउंस नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट, 1881 के अनुसार चेक बाउंस होने की स्थिति में व्‍यक्ति पर केस चलाया जा सकता है। उसे 2 साल तक की जेल या चेक में भरी राशि का दोगुना जुर्माना या दोनों लगाया जा सकता है। हालांकि ये उसी स्थिति में होता है जब चेक देने वाले के अकाउंट में पर्याप्‍त बैलेंस न हो और बैंक चेक को डिसऑनर कर दे।

 

जानिये, चेक बाउंस होने पर कब आती है मुकदमे की नौबत


यह भी नहीं है कि चेक डिसऑनर होते ही भुगतानकर्ता पर मुकदमा (check bounce punishment) चला दिया जाता है। चेक के बाउंस होने पर बैंक की ओर से पहले लेनदार को एक रसीद दी जाती है, जिसमें चेक बाउंस होने का कारण बताया जाता है। इसके बाद लेनदार को 30 दिनों के अंदर देनदार को नोटिस देना होता है। 


अगर नोटिस के 15 दिनों के अंदर देनदार की तरफ से कोई जवाब न आए तो चेक लेने वाला मजिस्ट्रेट की अदालत में नोटिस में 15 दिन गुजरने की तारीख से एक महीने के अंदर शिकायत दे सकता है।
वहीं अगर इसके बाद भी आपको रकम का भुगतान नहीं किया जाता है तो चेक देने वाले के खिलाफ केस (check bounce case) किया जा सकता है।  नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट की धारा 138 के तहत चेक का बाउंस होना एक दंडनीय अपराध है और इसके अलावा दो साल की सजा और जुर्माना या फिर दोनों का ही प्रावधान है।  

चेक बाउंस मामले में सजा होने पर कैसे करें अपील


चेक बाउंस का अपराध 7 वर्ष से कम की सज़ा का अपराध है इसलिए ये जमानती अपराध है। इसके अंतर्गत चलने वाले केस में अंतिम फैसले तक अभियुक्त (accused) को जेल नहीं होती है। अभियुक्त के पास अधिकार होते हैं कि वह आखिरी फैसले तक जेल जाने से बच सकता है। 


चेक बाउंस केस (cheque bounce case) में अभियुक्त सजा को निलंबित किए जाने के लिए गुहार लगा सकता है।  इसके लिए वह ट्रायल कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) के तहत आवेदन पेश कर सकता है। क्योंकि किसी भी जमानती अपराध में अभियुक्त के पास बेल लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सजा को निलंबित कर दिया जाता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के मुताबिक सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के अंदर अपील कर सकता है। 
 

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now