supreme court judgement on property : 38 साल बाद मिला प्रोपर्टी का मालिकाना हक, सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे सुलझाया फैसला
Property dispute : प्रॉपर्टी पर अवैध कब्जा होना कोई नई बात नहीं है ऐसे मामले आए दिन सामने आते रहते हैं और न जाने कोर्ट में कितने ही मामले पेंडिंग हैं जिनपर आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई है। राजस्थान के जयपुर से प्रॉपर्टी विवाद से जुड़ा एक ऐसा ही मामला सामने आया है जो पिछले 38 सालों से विचाराधीन था। जिसपर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने बड़ा फैसला सुनाया है। आईये नीचे खबर में जानते हैं-

My Job alarm - राजस्थान के जयपुर में एक प्रॉपर्टी विवाद (Property dispute News) से जुड़ा मामला सामने आया है। जो पिछले 38 सालों से निचली अदालत से होते हुए जिला अदालत, फिर हाईकोर्ट में लटक रहा था। जिसपर हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई करते हुए जमीन के मालिक के हक में फैसला सुनाया है। इसके साथ ही कोर्ट ने हैरानी जताई है कि एक प्रॉपर्टी विवाद केस पर फैसला आने में 38 साल का समय लग गया। कोर्ट (Court Decision) ने निर्देश दिया की 1985 में खरीदी गई प्रॉपर्टी को उसके मालिक को दिया जाए।
क्या है पूरा मामला?
मामला जयपुर (Jaipur property dispute) की एक प्राइम लोकेशन पर स्थित प्रॉपर्टी से जुड़ा है, जिसे 30 जनवरी 1985 को रवि खंडेलवाल ने खरीदा था। यह प्रॉपर्टी जयपुर मेटल इलेक्ट्रिक कंपनी से खरीदी गई थी। खरीद के बाद इस प्रॉपर्टी पर तुलिका स्टोर्स का किराएदार के तौर पर कब्जा था। प्रॉपर्टी का मालिकाना हक (Property Ownership) मिलने के बाद, खंडेलवाल ने तुलिका स्टोर्स से जगह खाली करने को कहा। लेकिन, तुलिका स्टोर्स ने प्रॉपर्टी खाली करने से मना कर दिया। इस विवाद ने दोनों पक्षों के बीच कानूनी लड़ाई का रूप ले लिया, जिसके चलते सालों तक कोर्ट में केस चलता रहा।
निचली अदालत, जिला अदालत, हाईकोर्ट में नहीं सुलझा मामला-
तुलिका स्टोर्स ने किराएदारों के अधिकार की रक्षा करने वाले 'टीनेंट कंट्रोल ऑफ रेंट एंड इविक्शन एक्ट' (Tenant Control of Rent and Eviction Act) का हवाला देते हुए प्रॉपर्टी खाली करने से साफ मना कर दिया। दरअसल, इस कानून के तहत पहले यह प्रावधान था कि किसी भी किराएदार को उसकी मर्जी के खिलाफ 5 साल के भीतर प्रॉपर्टी खाली नहीं कराई जा सकती। हालांकि, राजस्थान में बाद में इस कानून में बदलाव किया गया। इसके बावजूद मामला सुलझा नहीं और निचली अदालत से होते हुए जिला अदालत, फिर हाईकोर्ट (High Court) और अंत में सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया।
17 साल तक निचली अदालत में चला केस
खंडेलवाल और तुलिका स्टोर्स के बीच प्रॉपर्टी विवाद (property dispute News) पर निचली अदालत में 17 साल तक मुकदमा चला। अदालत ने फैसला सुनाया कि प्रॉपर्टी 1982 में किराये पर दी गई थी और जब किरायेदार को खाली करने के लिए कहा गया, तब तक 5 साल की अवधि पूरी नहीं हुई थी। इसलिए अदालत ने फैसला किरायेदार (Tenant) के पक्ष में दिया। इस फैसले के बाद खंडेलवाल ने जिला अदालत का रुख किया। जिला अदालत ने खंडेलवाल के पक्ष में निर्णय दिया। इसके बाद तुलिका स्टोर्स ने इस फैसले को राजस्थान हाईकोर्ट में चुनौती दे दी।
हाईकोर्ट को फैसला सुनाने में लगे 16 साल
राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) में 2004 में तुलिका स्टोर्स ने जिला अदालत के फैसले को चुनौती दी। हाईकोर्ट को इस मामले में फैसला सुनाने में पूरे 16 साल का समय लगा। 2020 में हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया, जो प्रॉपर्टी मालिक खंडेलवाल (property owner khandelwal) के खिलाफ था। इसके बाद खंडेलवाल ने हाईकोर्ट के इस निर्णय को चुनौती देते हुए इंसाफ के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
सुप्रीम कोर्ट ने सुलझाया प्रॉपर्टी विवाद का 38 साल पुराना मामला -
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने आखिरकार 38 साल पुराने प्रॉपर्टी विवाद का निपटारा करते हुए फैसला प्रॉपर्टी मालिक रवि खंडेलवाल के पक्ष में सुनाया। जस्टिस संजय किशन कौल (Justice Sanjay Kishan Kaul) और अहसानुद्दीन अमानुल्लाह की बेंच ने संविधान के आर्टिकल 142 के तहत अपने विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए यह विवाद सुलझाया। कोर्ट ने इस मामले की लंबी अवधि को लेकर हैरानी जताई और कहा कि अगर इसे फिर अपील में भेजा गया, तो यह न्याय का मजाक होगा। सुप्रीम कोर्ट ने मामले को समाप्त कर खंडेलवाल को उनकी प्रॉपर्टी पर कब्जे का अधिकार दे दिया।
प्रॉपर्टी मालिक ने कहीं बड़ी बात?
सुप्रीम कोर्ट से फैसला आने के बाद खंडेलवाल (Khandelwal) कहते हैं, "38 साल केस लड़ने के लिए उन्हें बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा। वकील मेरे पिता के दोस्त थे। इसलिए फीस का प्रेशर नहीं था। वरना ऐसे केस लड़ने के लिए वकील 3 से 5 लाख रुपये की फीस चार्ज करते हैं, जो आम आदमी की बस में नहीं होता है।"