Supreme Court : इस स्थिति में बेटी को नहीं मिलेगा पिता की संपत्ति में हिस्सा, सुप्रीम कोर्ट का बड़ा निर्णय
My job alarm - सुप्रीम कोर्ट ने एक विवाहित जोड़े के तलाक की सुनवाई के दौरान अपने फैसले में कहा है कि, जो बेटी अपने पिता से रिश्ता नहीं रखना चाहती, उस बेटी का अपने पिता की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होगा। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने पति-पत्नी और पिता-पुत्री के रिश्तों में सुलह की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बनने पर ये फैसला सुनाया।
फैसल में सुप्रीम कोर्ट ने की ये टिप्पणी –
दो जजों की बेंच ने तलाक के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि, जो बेटी अपने पिता से रिश्ता नहीं रखना चाहती, उसे अपने पिता की धन-संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं मिलेगा। इसके साथ ही बेटी अपनी पढ़ाई और शादी के लिए भी पिता से किसी तरह की मदद की मांग नहीं कर सकती।
ये है पूरा मामला-
पति ने अपने वैवाहिक अधिकारों को लेकर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट (Punjab and Haryana Highcourt) में याचिका दायर की थी। जिसे हाईकोर्ट ने अस्वीकार कर दिया। जिसके बाद पति ने सुप्रीम कोर्ट में तलाक की गुहार लगाई जिसमें कोर्ट की बेंच ने पति-पत्नी और पिता-पुत्री के रिश्तों में सुलह की कोशिश की। जिसमें दोनों ही पक्षों ने समझौते से इंकार कर दिया। आपको बता दें पूरे मामले में बेटी जन्म से ही अपनी माता के साथ रहती है और अब 20 साल की हो चुकी है। इस उमें में उसने अपने पिता को देखने तक से इंकार कर दिया।
पिता-पुत्री के रिश्ते पर कानून-
2005 में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (Hindu Succession Act) 1956 में बदलाव करके बेटियों को पिता की संपत्ति में बराबर का हक दिया गया था। लेकिन कानून के अनुसार बेटी अपने पिता से रिश्ता नहीं रखती है तो उसको संपत्ति में कोई हक नहीं मिलेगा। वहीं पिता अपनी बेटी से रिश्ता नहीं तोड़ सकता और अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ सकता।
Supreme Court की बेंच ने कही ये बात -
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस संजय किशन कौल की बेंच ने अपने फैसले में कहा कि, बेटी बालिग है और उसकी उम्र 20 साल की है और अपना फैसला लेने में लिए स्वतंत्र है। अगर बेटी पिता से रिश्ता नहीं रखना चाहती तो वह अपने पिता की संपत्ति (fathers property) और पैसे की भी हकदार नहीं होगी। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट (Supreme court) की बेंच ने पति को पत्नी को 8 हजार रुपये मासिक या एकमुश्त 10 लाख रुपये का गुजारा भत्ता (alimony) देने का आदेश दिया।