supreme court : सरकारी कर्मचारियों के HRA को लेकर सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला
HRA of government employees : कर्मचारियों के लिए बड़े ही काम की खबर सामने आ रही है। कर्मचारियों के भत्तों को लेकर कुछ नियम तय है जिनके अनुसार ही उन्हे सैलरी में भत्ते दिए जाते है। हाल ही में एक कर्मचारी ने अपने एचआरए को लेकर कोर्ट में याचिका दज र्की है। उसी पर कोर्ट ने भी अपना अहम फैसला सुना दिया है। तो देर किस बात की आइए नीचे खबर में विस्तार से जान लें कि क्या है सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला...
My job alarm (supreme court) : सरकारी कर्मचारियों के लिए एचआरए का काफी महत्व होता है। अगर आप भी एक कर्मचारी है तो आपको इसके बारे में जरूर मालूम होग। हाउस रेंट अलाउंस (HRA) एक भत्ता है जो नियोक्ता अपने कर्मचारियों को उनके घर का किराया चुकाने के लिए देता है। यह भत्ता कर्मचारी के वेतन का एक हिस्सा होता है और यह टैक्सेबल (taxable allowance) होता है। इसे से संबंधित एक मामला सामने आया था जिस पर सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision) ने एक बड़ा फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि सरकारी कर्मचारी अगर अपने सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी (retired government employee) पिता को आवंटित रेंट फ्री सरकारी आवास में रहता है तो वह मकान भत्ता यानि एचआरए का दावा नहीं कर सकता।
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट के आदेश (High Court orders) को सही ठहराया है। हाई कोर्ट ने सरकारी आवास में रहते हुए एचआरए लेने पर भेजे गए रिकवरी नोटिस को रद्द करने की मांग (Demand to cancel HRA recovery notice) ठुकरा दी।
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में यह फैसला न्यायमूर्ति बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली आर. के. मुंशी की अपील खारिज करते हुए सुनाया है। मौजूदा मामले में सुप्रीम कोर्ट में अपील दाखिल करने वाले याचिकाकर्ता (petitioner) मुंशी के पिता को सरकारी आवास आवंटित था जो कि जम्मू कश्मीर पुलिस में डीएसपी और विस्थापित कश्मीरी पंडित थे।
2 में से किसी एक को ही मिलेगा HRA
इस मामले के अनुसार पिता और पुत्र दोनो ही सरकारी कर्मचारी है। पिता को पहले से ही सरकारी आवास (government House) प्रदान किया गया है। इस मामले में याचिकाकर्ता उन्हीं के साथ सरकारी आवास में रहता था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले से साफ हो गया है कि अगर कोई सरकारी कर्मचारी, सरकारी नौकरी से सेवानिवृत हुए अपने पिता को आवंटित रेंट फ्री सरकारी आवास में रहता है तो वह एचआरए का हकदार नहीं हो सकता। वह व्यक्ति एचआरए रूल 6 (एच) (4) का सहारा नहीं ले (HRA rules) सकता, जो कहता है कि दो या दो से अधिक सरकारी कर्मचारी जैसे पति पत्नी या माता पिता या बच्चे किसी एक को आवंटित सरकारी आवास में साथ-साथ रहते हैं तो उनमें से किसी एक को ही एचआरए मिल सकता है।
क्या हो सकता है सेवानिवृति के बाद वह HRA का दावा?
अदालत की पीठ का कहना है कि यह बात सही है कि उसके पिता को विस्थापित कश्मीरी पंडित (Displaced Kashmiri Pandits) और सेवानिवृत सरकारी कर्मचारी के तौर पर आवास आवंटित हुआ था लेकिन वास्तविकता वही है कि सेवानिवृति के बाद वह एचआरए का दावा (HRA claim after retirement) नहीं कर सकते। हाई कोर्ट के आदेश में कोई खामी नहीं है। इसे बिलकुल सही करार दिया गया है।
क्या ये है HRA का दावा करने के पात्र?
इस मामले पर आपकी जानकारी के लिए बता दें कि मौजूदा मामले में जम्मू कश्मीर सिविल सर्विस (एचआरए एंड सिटी कंपनशेसन अलाउंस ) रूल 1992 के दो उपबंधों रूल 6 (एच) (1) और (2) तथा रूल 6(एच) (4) का मुद्दा शामिल था। सुप्रीम कोर्ट (supreme court verdict) ने कहा कि आवास अपीलकर्ता के पिता को आवंटित था और वह 1993 में सेवानिवृत हो गए। ऐसे में ये तो स्वत: सिद्ध है कि पद से हटने के बाद वह एचआरए (HRA) का दावा करने के पात्र नहीं हैं।
क्या था पूरा मामला
दरअसल, मामला एक सरकारी कर्मचारी का है बता दें कि इस मामले में याचिकाकर्ता आर. के. मुंशी (Petitioner R. K. Accountant) है जो कि जम्मू कश्मीर पुलिस में इंस्पेक्टर टेलीकॉम था। उसके बताए अनुसार वह 30 अप्रैल 2014 को सेवानिवृत हो गया। उसे विभाग से HRA रिकवरी का एक नोटिस आया। जिसमें कि ये कहा गया कि उसने अवैध रूप से एचआरए ले लिया है जिसे वह वापस लौटाए। उस पर रूल 6 (एच) के तहत कार्रवाई हुई थी। जिसमें कहा गया था कि सरकारी आवास में रहते हुए उसे एचआरए (taking HRA while living in govt accommodation) लिया है।
आपको जानकर हैरानी होगी कि अपीलकर्ता को 396814 रुपये जमा कराने का नोटिस भेजा गया। उसने रिकवरी नोटिस को हाई कोर्ट में चुनौती दी लेकिन हाई कोर्ट याचिका खारिज (High Court petition) कर दी थी जिसके बाद वह सुप्रीम कोर्ट आया था।