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supreme court: पिता की पैतृक संपत्ति में बेटियों का कितना हिस्सा, आसान भाषा में समझिये सुप्रीम कोर्ट का फैसला

Daughter Right To Property:  हमारी सामाजिक सिस्टम में काफी बदलाव आ गया है। लेकिन, सोच अभी भी पूरी तरह बदल नहीं सकी है। लोगों की आज भी सोच हैं कि पिता की प्रोपर्टी पर पहला हक बेटे का होता है। जबकि हमारे देश बेटियों के हक में कई कानून बने हैं। उसके बाद भी समाज में कई पुरानी परंपरा आज भी मौजूद हैं। आज भी सामाजिक स्तर पर पिता की प्रॉपर्टी पर पहला हक बेटे का दिया जाता है।  बेटी की शादी होने के बाद वो अपने ससुराल चली जाती है तो कहा जाता है कि उसका प्रोपर्टी (daughter property rights) से हिस्सा खत्म हो गया। 
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supreme court: पिता की पैतृक संपत्ति में बेटियों का कितना हिस्सा, आसान भाषा में समझिये सुप्रीम कोर्ट का फैसला

My job alarm - Supreme Court Decision: घर में जब बेटी का जन्म होता है, तो अक्सर कहा जाता है कि लक्ष्मी आई है। लेकिन जब बात उस लक्ष्मी को उसके अधिकार देने की आती है, तो लोग कई बार पीछे हटने लगते हैं। बेटियों के अधिकारों को लेकर समाज में अक्सर दोहरा मापदंड देखने को मिलता है। विशेष रूप से संपत्ति के अधिकारों की बात करें, तो बेटियों को (daughters right on fathers property) उनके हक से वंचित कर दिया जाता है। संपत्ति पर बेटियों के अधिकारों को लेकर कई गलतफहमियां हैं। आज हम आपको बताएंगे कि कानून के अनुसार बेटियों को संपत्ति में कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं और किन परिस्थितियों में उन्हें अपने पिता की संपत्ति में हक नहीं मिलता। 


इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के तीन जजों की बेंच ने मंगलवार को पैतृक संपत्ति में बेटियों के हक पर बड़ा (daughters share in property)फैसला दिया। इस मामले में पीठ द्वारा यह भी कहा गया कि यह लैंगिक समानता हासिल करने की दिशा में बड़ा कदम है। 'लैंगिक समानता का संवैधानिक लक्ष्य देर से ही सही, लेकिन पा लिया गया है और विभेदों को 2005 के संशोधन कानून की धारा 6 के जरिए खत्म कर दिया गया है। पहले हिंदु कानून बेटियों को संपत्ति का मालिक होने से रोकता था। लेकिन अब संविधान के द्वारा इसे खत्म कर दिया हैं। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने बेटियों को 1956 से ही बेटियों को संपत्ति का अधिकार दे दिया आइए जानते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर 10 बड़े सवालों के जवाब...


1. Supreme Court ने क्या कहा?
सुप्रीम कोट ने अपने फैसले में कहा कि बेटियों का संपत्ति पर जन्मजात अधिकार होता हैं। इसलिए बेटियों का बेटों के बराबर संपत्ति पर हक होगा। मतलब, बेटी के जन्म (Hindu Succession Act)लेते ही उसका अपने पिता की पैतृक संपत्ति की अधिकारी हो जाती हैं। ठीक वैसे जैसे एक पुत्र जन्म के साथ ही अपने पिता की पैतृक संपत्ति का दावेदार बन जाता है।


2. Supreme Court ने ऐसा क्यों कहा?
सुप्रीम कोर्ट के सामने यह सवाल उठा कि क्या हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 के प्रावधानों को पिछली तारीख (बैक डेट) से प्रभावी माना जाएगा? इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हां, यह बैक डेट से ही लागू है। 121 पन्नों के (property rights of daughter) अपने फैसले में तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, 'हिंदू उत्तराधिकार कानून, 1956 की संशोधित धारा 6 संशोधन से पहले या बाद जन्मी बेटियों को हमवारिस (Coparcener) बनाती है और उसे बेटों के बराबर अधिकार और दायित्व देती है। बेटियां 9 सितंबर, 2005 के पहले से प्रभाव से पैतृक संपत्ति पर अपने अधिकार का दावा ठोक सकती हैं।'


3. 9 सितंबर, 2005 का मामला क्यों उठा?
बता दें कि इस तारीख को हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून 2005 लागू हुआ था। दरअसल, हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 से अस्तित्व में है लेकिन 2005 में इसे संशोधित (Legal provision of daughters)किया गया था। संशोधन के पश्चात कहा गया कि इसके लागू होने से पहले पिता की मृत्यु हो जाए तो बेटी का संपत्ति में अधिकार खत्म हो जाता है। यानी, अगर पिता संशोधित कानून लागू होने की तारीख 9 सितंबर, 2005 को जिंदा नहीं थे तो बेटी उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सा नहीं मांग सकती है।


4. Supreme Court के फैसले में वर्ष 1956 का जिक्र क्यों?
हम ऊपर लिखित आर्टिकल में हिंदू उत्तराधिकार कानून, के बारे जान चुके हैं कि यह कानून 1956 में ही आया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन)कानून, 2005 की धारा 6 की व्याख्या करते हुए कहा कि बेटी को भी ठीक बेटे की तरह जन्म के साथ ही पिता की पैतृक संपत्ति में अधिकार मिलेगा। 


5. 20 दिसंबर, 2004 का जिक्र क्यों?
सुप्रीम कोर्ट ने बेटी को पिता की पैतृक संपत्ति में 1956 से हकदार बनाकर 20 दिसंबर, 2004 की समयसीमा इस बात के लिए तय कर दी कि अगर इस तारीख तक पिता की पैतृक संपत्ति का निपटान हो गया तो बेटी उस पर सवाल नहीं उठा सकती है। मतलब, 20 दिसंबर, 2004 के बाद बची पैतृक संपत्ति पर ही बेटी का अधिकार (What rights do daughters have in property) होगा। उससे पहले संपत्ति बेच दी गई, गिरवी रख दी गई या दान में दे दी गई तो बेटी उस पर सवाल नहीं उठा सकती है। दरअसल, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून, 2005 में ही इसका जिक्र है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस बात को सिर्फ दोहराया है।

6. क्या बेटों के अधिकार पर ताजा फैसले का कोई असर होगा?
कोर्ट ने संयुक्त हिंदू परिवारों को हमवारिसों को ताजा फैसले से परेशान नहीं होने की भी सलाह दी। सुप्रीम कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने कहा, 'यह सिर्फ बेटियों के अधिकारों को विस्तार देना है। दूसरे रिश्तेदारों के अधिकार पर इसका कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्हें सेक्शन 6 में मिले अधिकार बरकरार रहेंगे।'


7. क्या बेटी की मृत्यु हो जाए तो उसके बच्चे नाना की संपत्ति में हिस्सा मांग सकते हैं?
इस बात पर गौर करना चाहिए कि कोर्ट ने पैतृक संपत्ति में बेटियों को बेटों के बराबर अधिकार दिया है। अब इस सवाल का जवाब पाने कि लिए एक और सवाल कीजिए कि क्या पुत्र की मृत्यु होने पर उसके बच्चों का दादा की पैतृक संपत्ति पर अधिकार खत्म हो जाता है? इसका जवाब है नहीं। अब जब पैतृक संपत्ति में अधिकार के मामले में बेटे और बेटी में कोई फर्क ही नहीं रह गया है तो फिर बेटे की मृत्यु के बाद उसके बच्चों का अधिकार कायम रहे जबकि बेटी की मृत्यु के बाद उसके बच्चों का अधिकार खत्म हो जाए, ऐसा कैसे हो सकता है? मतलब साफ है कि बेटी जिंदा रहे या नहीं, उसका पिता की पैतृक संपत्ति पर अधिकार कायम रहता है। उसके बच्चे चाहें कि अपने नाना से उनकी पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी ली जाए तो वो ले सकते हैं।


8. पैतृक संपत्ति क्या है?
पैतृक संपत्ति में ऊपर की तीन पीढ़ियों की संपत्ति शामिल होती है। यानी, पिता को उनके पिता यानी दादा और दादा को मिले उनके पिता यानी पड़दादा से मिली संपत्ति हमारी पैतृक संपत्ति है। पैतृक संपत्ति में पिता द्वारा अपनी कमाई से अर्जित संपत्ति शामिल नहीं होती है। इसलिए उस पर पिता का पूरा हक रहता कि वो अपनी अर्जित संपत्ति का बंटवारा किस प्रकार करें। पिता चाहे तो अपनी अर्जित संपत्ति में बेटी या बेटे को हिस्सा नहीं दे सकता है, कम-ज्यादा दे सकता है या फिर बराबर दे सकता है। अगर पिता की मृत्यु बिना वसीयतनामा लिखे हो जाए तो फिर बेटी का पिता की अर्जित संपत्ति में भी बराबर की हिस्सेदारी हो जाती है।

9. सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में क्या कहा?
केंद्र सरकार ने भी सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के जरिए पैतृक संपत्ति में बेटियों की बराबर की हिस्सेदारी का जोरदार समर्थन किया। केंद्र ने कहा कि पैतृक संपत्ति में बेटियों का जन्मसिद्ध अधिकार है। जस्टिस मिश्रा ने इसकी व्याख्या करते हुए कहा कि बेटियों के जन्मसिद्ध अधिकार का मतलब है कि उसके अधिकार पर यह शर्त थोपना कि पिता का जिंदा होना जरूरी है, बिल्कुल अनुचित होगा। बेंच ने कहा, 'बेटियों को जन्मजात अधिकार है न कि विरासत के आधार पर तो फिर इसका कोई औचित्य नहीं रह जाता है कि हिस्सेदारी में दावेदार बेटी का पिता जिंदा है या नहीं।''


10. बेटियां ताउम्र प्यारी... जैसी कौन सी टिप्पणी सुप्रीम कोर्ट ने की?
सुप्रीम कोर्ट ने अभी अपनी तरफ से इस पर कुछ नहीं कहा। यह बात सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में दिए गए फैसले के वक्त ही कही थी। तीन सदस्यीय पीठ के अध्यक्ष जस्टिस अरुण मिश्रा ने इसे दोहराया। उन्होंने कहा, 'बेटा तब तक बेटा होता है जब तक उसे पत्नी नहीं मिलती है। बेटी जीवनपर्यंत बेटी रहती है।' तीन सदस्यीय पीठ में जस्टिस एस. अब्दुल नजीर और जस्टिस एमआर शाह भी शामिल थे।


बेटी कब नहीं कर सकती दावा (When the daughter cannot claim)? 
गौर करने वाली बात यह है कि अगर पिता अपने मरने से पहले अपनी प्रॉपर्टी को बेटे के नाम पर कर देता है। इस स्थिति में बेटी अपने पिता की प्रॉपर्टी को क्लेम नहीं कर सकती है। स्वअर्जित संपत्ति (Property Rights)के मामले में भी बेटी का पक्ष कमजोर होता है। अगर पिता ने अपने पैसे से जमीन खरीदी है, मकान बनवाया है या खरीदा है तो वह जिसे चाहे यह संपत्ति दे सकता है। स्वअर्जित संपत्ति को अपनी मर्जी से किसी को भी देना पिता का कानूनी अधिकार है। यानी, अगर पिता ने बेटी को खुद की संपत्ति में हिस्सा देने से इनकार कर दिया तो बेटी कुछ नहीं कर सकती है।

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