Supreme Court ने किया क्लियर, शादीशुदा बहन की प्रोपर्टी में भाई का कितना हक
My job alarm - (supreme court) : बहन की प्रोपर्टी में भाई का कितना अधिकार, ये जानने से पहले आपको ये भी पता होना चाहिए की पिता की प्रोपर्टी में भाई बहन का कितना अधिकार होता है। सुप्रीम कोर्ट ने साल 2022 में बेटियों के पैतृक संपत्ति (supreme court decision on ancestral property) पर हक को लेकर एक टिप्पणी करते हुए कहा था कि बेटे तो सिर्फ शादी तक बेटे रहते हैं, लेकिन बेटी हमेशा बेटी ही रहती है। विवाह के बाद बेटों की नीयत और व्यवहार में बदलाव आ जाता है, परंतु एक बेटी अपने जन्म से लेकर मौत तक माता-पिता के लिए प्यारी बेटी ही होती है। विवाह के बाद माता-पिता के लिए बेटियों का प्यार और भी ज्यादा बढ़ जाता है। इसलिए बेटी पैतृक संपत्ति (property rights) में बराबर की हकदार बनी रहती है। दरअसल 2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून में संशोधन हुआ था। जिसमें पहली बार बेटियों को भी पैतृक संपत्ति में अधिकार दिया गया, लेकिन ये अधिकार उन्हीं को मिलता था, जिनके पिता का देहांत 9 सितंबर 2005 के बाद हुई हो। इसके सुप्रीम कोर्ट ने इसमें तारीख और वर्ष वाली शर्त खत्म कर दी। मतलब की पिता की प्रोपर्टी में भाई बहन का बराबर का अधिकार दिया गया है।
बहन की प्रोपर्टी में भाई का हक
अब आते हैं बहन की प्रोपर्टी (sister's property) में भाई के अधिकार पर, इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना सीधा फैसला सुनाया हैं कि विवाहित बहन को ससुराल से मिली संपत्ति पर भाई का कोई (supreme court judgement) कानूनी अधिकार नहीं है। हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार, ऐसी संपत्ति केवल पति या ससुर के उत्तराधिकारियों को ही मिलेगी लेकिन लडकी के मायके वालों का इस संपत्ति पर कोई हक नहीं होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि शादीशुदा बहन को पति से विरासत में मिली संपत्ति पर भाई कोई हक नहीं जता सकता है। उसे बहन का उत्तराधिकारी या पारिवारिक सदस्य नहीं माना जा सकता है। बता दें कि (Hindu widow husband property) हिंदु उत्तराधिकार कानून के प्रावधानों का देखते हुए शीर्ष न्यायालय ने देहरादून निवासी दुर्गा प्रसाद की इस संबंध में दायर याचिका को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा एवं जस्टिस आर बानुमथि की पीठ ने कहा, 'कानून की धारा 15 में स्पष्ट उल्लेख किया गया है कि किसी महिला को पति और ससुर से विरासत में मिली संपत्ति पर उन्हीं के उत्तराधिकारियों (hindu succession law) का अधिकार है।' अपनी याचिका में दुर्गा प्रसाद ने उत्तराखंड हाई कोर्ट के के आदेश को चुनौती दी थी।
हाईकोर्ट ने अपने इस आदेश में फरमान दिया कि देहरादून के जिस मकान में याची की स्वर्गीय बहन ललिता किराएदार के रूप में रह रही थी, उस पर दुर्गा ने अवैध कब्जा कर रखा है। उससे कब्जा खाली कराया जाए। हाई कोर्ट के फैसले को बरकरार रखते हुए शीर्ष न्यायालय की पीठ (right to property) ने कहा कि विवादित मकान को ललिता के ससुर ने 1940 में किराए पर लिया था। बाद में महिला के पति इसके किराएदार हो गए। उनकी मौत के बाद ललिता किराएदार बन गई।
इस सबके बाद महिला की मौत भी हो गई। कानूनी प्रावधानों के अनुसार दुर्गा प्रसाद को ललिता का वारिस नहीं (Daughter property Right) माना जा सकता है। लिहाजा मकान पर उसका कब्जा अवैध है। इसके साथ ही कोर्ट ने इसे खाली करवाने का आदेश दे दिया हैं।