Supreme Court ने किया साफ, पत्नी की संपत्ति में पति का कितना हक
My job alarm (ब्यूरो) : स्वयं अर्जित प्रोपर्टी और विरासत में मिली प्रोपर्टी में काफी अंतर होता है। वैसे ही पति और पत्नी की संपत्ति (husband and wife property rights) को लेकर भी अधिकार अलग-अलग ही होते है। ऐसा नही है कि कोई भी कैसे भी किसी की भी सपंत्ति पर अपने दावे का अधिकार (right of claim on property) जता सकता है। इसे लेकर हमारे देश में कई नियम और कानून बनाए गए है।
देश की अदालतों में संपत्ति के विवाद (Property disputes cases in the country's courts) को लेकर मामले चलना आम बात है। ऐसे ही संपत्ति के एक मामले पर अब सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसला (Supreme Court made a historic decision) सुनाया जिसमें कहा कि महिला का स्त्रीधन उसकी पूर्ण संपत्ति है। उसके पास इसे अपनी मर्जी से खर्च करने का संपूर्ण अधिकार (human rights) है। यह कभी भी उसके पति के साथ संयुक्त संपत्ति नहीं बन सकती।
पत्नी की संपत्ति में पति का कितना हक
सुप्रीम कोर्ट ने ये भी माना है कि संकट के समय में पति इसका उपयोग कर सकता है लेकिन इसे या इसके मूल्य को पत्नी को लौटाना पति का दायित्व है। सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस (Supreme Court judge) संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपनी शक्ति का प्रयोग करते हुए पति को अपनी पत्नी के सभी आभूषण छीनने (snatching all the wife's jewelery) के लिए 25 लाख रुपए की आर्थिक क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया।
कोर्ट में पहुंचे मामले के तहत महिला अब 50 वर्ष की है , जीवन-यापन की लागत में वृद्धि (increase in cost of living) और समता एवं न्याय के हित को ध्यान में रखते हुए महिला को क्षतिपूर्ति देने का आदेश (order to pay compensation) दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाईकोर्ट के फैसले को रद्द (Kerala High Court's decision canceled) कर दिया, जिसमें तलाक मंजूर करते हुए पति और सास से सोने के मूल्य के रूप में 8,90.000 रुपए वसूलने के फैमिली कोर्ट के 2011 के आदेश को रद्द कर दिया था।
जस्टिस की पीठ ने हाईकोर्ट के तर्क को नकार दिया कि एक नवविवाहित महिला को शादी के बाद पहली रात ही सारे सोने के आभूषणों से वंचित (Newly married woman deprived of gold jewelery) कर दिया जाना विश्वसनीय नहीं है। इस पर तर्क देते हुए पीठ ने कहा है कि लालच एक शक्तिशाली प्रेरक है और इसने मनुष्यों को बहुत ही घृणित अपराध करने के लिए प्रेरित करता है। इस प्रकार, हम इसे मानवीय संभावना के दायरे से बाहर नहीं पाते हैं कि एक पति अपनी पत्नी के खिलाफ ऐसे अस्वीकार्य और अवांछनीय कार्य (Unacceptable and undesirable actions) करे(जैसा कि आरोप लगाया गया था।
अब आपके मन में इस मामले को लेकर काफी सवाल उठ रहे होंगे तो आपको बता दें कि पत्नी ने दावा किया था कि 2003 में शादी की पहली रात उसके पति ने उसके सारे गहने सास के पास सुरक्षित रखने के लिए ले लिए थे। हालांकि हाईकोर्ट (high court decision) ने वर्ष 2009 में दायर की गई याचिका के कारण महिला की ओर से सद्भावना की कमी को जिम्मेदार ठहराया जबकि पति-पत्नी का साथ 2006 में ही समाप्त हो गया था।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विवाह के मामले शायद ही कभी सरल या सीधे कहे जा सकते हैं इसलिए विवाह के पवित्र बंधन को तोड़ने से पहले एक यांत्रिक समयसीमा के अनुसार मानवीय प्रतिक्रिया वह नहीं है जिसकी कोई उम्मीद करेगा। कोर्ट (court verdict) ने इस मामले को बड़ी गंभीरता से लिया है।