My job alarm

Supreme Court ने किया साफ, प्रोपर्टी पर कब्जा करने वाला उसका मालिक हो सकता है या नहीं

supreme court decision : वैसे तो अचल संपत्ति को सबसे सुरक्षित निवेश माना जाता है, क्योंकि इसे पैसा या जेवर की तरह कोई चुरा नहीं सकता है। लेकिन, जमीन और मकान को लेकर एक खतरा हमेशा रहता है और वो है कब्जे (property possession) का खतरा। खासकर जब तब या तो आपने किसी को घर या खाली जमीन किराये पर दी हो या फिर खरीदने के बाद लंबे समय तक उसकी सुध न ली हो। कई लोग खाली जमीन पर अतिक्रमण (property occupied) कर बैठ जाते हैं और अस्थाई निर्माण भी कर लेते हैं। देशभर में आए दिन जमीन और मकानों पर कब्जे से जुड़े सैंकड़ो विवाद सामने आते रहते हैं। जमीनों से जुड़े इन विवादों को लेकर लोग थाने-कचहरी के चक्कर लगाते रह जाते हैं। अब सवाल ये उठता है कि अगर कोई व्यक्ति आपको प्रोपर्टी पर कब्जा कर तो वह उसका कानूनी तौर पर मालिक बन सकता है या नहीं। इसी संबंध में सुप्रीम कोर्ट (supreme court decision on property ) की ओर से महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया है।

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Supreme Court ने किया साफ, प्रोपर्टी पर कब्जा करने वाला उसका मालिक हो सकता है या नहीं

My job alarm (supreme court decision property rights) : सबसे पहले तो ये जानते हैं कि प्रोपर्टी पर अवैध कब्जे (property possession law) को लेकर कानून क्या कहता है। जमीन पर अतिक्रमण से मतलब है कि कोई व्यक्ति गैर कानूनी तरीके से किसी दूसरे की जमीन या प्रापर्टी पर कब्जा करता है या उसे हड़प लेता है। आमतौर पर व्यक्ति जमीन पर अतिक्रमण करने के लिए जमीन पर अस्थायी निर्माण कर लेता है। जमीन पर अतिक्रमण को भारत के कानून के तहत अपराध माना गया है। भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 441 जमीन और संपत्ति पर अतिक्रमण से जुड़े मामलों पर लागू होती है। यदि कोई व्यक्ति गलत तरीके और नियत से जमीन या मकान पर कब्जा करता है तो उस पर सेक्शन 447 के तहत जुर्माना लगाया जाता है और इसमें 3 महीने की सश्रम कारावास की सजा का भी प्रावधान है।

 

अब आते हैं सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर, दरअसल इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Decision) ने का कहना है कि किसी  किसी संपत्ति पर अस्थायी कब्जे करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति का मालिक नहीं हो सकता। साथ ही टाइटलधारी भूस्वामी ऐसे व्यक्ति को बलपूर्वक कब्जे से बेदखल कर सकता है, चाहे उसे कब्जा किए 12 साल से अधिक का समय हो गया हो। 

 


सुप्रीम कोर्ट ने कही बड़ी बात

 


प्रॉपर्टी के अवैध कब्जे (property possession law in India)  के मामले पर सुनवाई करते हुए शीर्ष कोर्ट ने कहा कि ऐसे कब्जेदार को हटाने के लिए कोर्ट की कार्यवाही की जरूरत भी नहीं है। अगर उस प्रॉपर्टी से उसका कोई लिंक नहीं है। कोर्ट कार्यवाही की जरूरत तभी पड़ती है जब बिना टाइटल वाले कब्जेधारी के पास संपत्ति पर प्रभावी/ सेटल्ड कब्जा (settled property possession) हो जो उसे इस कब्जे की इस तरह से सुरक्षा करने का अधिकार देता है जैसे कि वह सचमुच मालिक हो। 

 


जस्टिस एनवी रमणा और एमएम शांतनागौडर की पीठ ने फैसले में कहा अगर कोई व्यक्ति जब किसी संपत्ति पर कब्जे की बात करता है तो उसे उस संपत्ति पर कब्जा टाइटल दिखाना होगा। और उसे यह सिद्ध करना होगा कि उसका संपत्ति पर प्रभावी कब्जा है। लेकिन अस्थायी कब्जा (illegal property of property) ऐसे व्यक्ति को वास्तविक मालिक के खिलाफ अधिकार नहीं देता। कोर्ट ने कहा प्रभावी कब्जे का मतलब है कि ऐसा कब्जा जो पर्याप्त रूप से लंबे समय से हो और इस कब्जे पर वास्तविक मालिक चुप्पी साधे बैठा हो। लेकिन अस्थायी कब्जा अधिकृत मालिक को कब्जा लेने से बाधित नहीं कर सकता। 

 


कोर्ट का कहना है कि प्रॉपर्टी पर कभी कब्जा कर लेना कभी छोड़ देना या उसमें घुस जाना, जो स्थायी कब्जे में परिपक्व नहीं हुआ है, उसे संपत्ति का असली मालिक हटा सकता है। इसके लिए वह कानून की भी मदद ले सकता है और यहां तक कि वह आवश्यक बल का भी प्रयोग कर सकता (property se kabja kaise hataye) है। कोर्ट ने कब्जेदार का यह तर्क भी ठुकरा दिया कि लिमिटेशन एक्ट, 1963 की धारा 64 के तहत मालिक ने कब्जे के खिलाफ 12 वर्ष के अंदर मुकदमा दायर नहीं किया। कोर्ट ने कहा कि यह समय सीमा प्रभावी/ सेटल्ड कब्जे के मामले में ही लागू होती है और अस्थायी कब्जे के मामले में नहीं। 


ये है मामला

 

 

बाड़मेर में पूनाराम ने जागीरदार से 1966 में कुछ संपत्ति खरीदी थी जो एक जगह नही थी। जब संपत्ति के लिए स्वामित्व घोषणा का वाद दायर किया गया तो कब्जा मोतीराम के पास मिला। मोतीराम कोई दस्तावेज नहीं दिखा पाया और ट्रायल कोर्ट ने सपंत्ति (property documents) पर मकान बनाने के लिए पास किए नक्शे के आधार पर मोतीराम को 1972 में बेदखल करने का आदेश दिया। मोती हाईकोर्ट गया और राजस्थान हाईकोर्ट ने फैसला (legal possession of property) पलट दिया। इसके खिलाफ मालिक सुप्रीम कोर्ट आया था।

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