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supreme court : क्या आपकी प्राइवेट प्रोपर्टी पर कब्जा कर सकती है सरकार, सुप्रीम कोर्ट का आया महत्वपूर्ण फैसला

supreme court Decision :हर इंसान के लिए अपने जीवन में कमाई से ली गई प्रोपर्टी बहुत अहमियत रखती है। इसे लेकर इंसान अपने व अपने बच्चों के भविष्य को लेकर कई तरह के सपने भी संजोता है। अधिकतर लोग इस बारे में अनजान होते हैं कि किसी की निजी प्रोपर्टी पर सरकार कब्जा (property par kabja) कर सकती है या नहीं। सुप्रीम कोर्ट का इस पर एक अहम फैसला आया आया है। आइये जानते हैं इस बारे में डिटेल से इस खबर में।

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supreme court : क्या आपकी प्राइवेट प्रोपर्टी पर कब्जा कर सकती है सरकार, सुप्रीम कोर्ट का आया महत्वपूर्ण फैसला

My job alarm - (supreme court news) संपत्तियों से जुड़े कई तरह के मामले व विवाद कोर्ट में आते रहते हैं। सुप्रीम कोर्ट में निजी संपत्तियों को लेकर चल रहे एक अहम मामले में कोर्ट ने निर्णय (private property par supreme court ka decision) सुनाया है। यह मामला सरकार द्वारा निजी प्रोपर्टी पर सरकार द्वारा कब्जा किए जाने को लेकर है। इस संबंध में संविधान में भी अनुच्छेद 39 बी में व्याख्या की गई है। इसे ध्यान में रखते हुए कोई ने निर्णय लिया है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट में इस तरह की कई याचिकाओं पर सुनवाई जारी है। 

 

16 याचिकाओं पर की जा रही सुनवाई

 


बता दें कि निजी संपत्ति पर सरकार कब्जा कर सकती है या नहीं, इस मामले पर सुप्रीम की एक पीठ 16 याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है। इसमें मुंबई की POA यानी प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (Property Owners Association) की ओर से दायर की गई याचिका भी शामिल है। CJI डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली नौ जजों की पीठ  इस मसले पर अभी गहन मंथन में है कि क्या किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है? इसके अलावा इसमें यह सवाल भी शामिल है कि क्या राज्य के अधिकारी या विभाग इसे ‘सार्वजनिक हित’ के लिए कब्जे (kya private property ko sarkar kabje me le skti hai)में ले सकते हैं? ताजा अपडेट के अनुसार इस पर कोर्ट के अनुसार फैसला अभी सुरक्षित रखा गया है।

 

 

प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन कर रही यह विरोध


हालांकि इन याचिकाओं को लेकर निजी संपत्ति को समुदाय के भौतिक संसाधन माने जाने या न माने जाने को लेकर सुनवाई पूरी हो चुकी है। इसका फैसला सुरक्षित रखते हुए कोर्ट की नौ सदस्यीय पीठ मंथन भी कर रही है। बता दें कि याचिका में पीओए (प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन )ने महाराष्ट्र आवास और क्षेत्र विकास प्राधिकरण अधिनियम (Maharashtra Housing and Area Development Authority Act) के अध्याय आठ(ए) का प्रमुखता से विरोध किया है। एसोसिएशन का कहना है संविधान के अनुच्छेद 39 बी से जुड़ा अधिनियम राज्य सरकार या उसके प्राधिकारियों को किसी की निजी संपत्ति को कब्जे में लेने का अधिकार प्रदान करता है, जो सही नहीं है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में यह स्पष्ट कर चुका है कि समुदाय हित के लिए किसी की निजी संपत्ति पर सरकार को कब्जा प्रदान करने के अधिकार को लेकर महाराष्ट्र सरकार के कानून का इश्यू अलग है, उस पर  अलग से विचार होगा।


यह कहना है कोर्ट का


इस मामले को लेकर सुनवाई करने वाली नौ सदस्यीय पीठ में संविधान पीठ में CJI (Chief Justice of india) जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस हृषिकेश रॉय, जस्टिस बी वी नागरत्ना, जस्टिस सुधांशु धूलिया, जस्टिस जे बी पारदीवाला आदि भी शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट की इस पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता सहित कई अधिवक्ताओं की दलीलें सुनने के बाद इस मामले में फैसला सुरक्षित रखा है। महाराष्ट्र सरकार का किसी की निजी संपत्ति पर सार्वजनिक हित को लेकर सरकार को  कब्जा करने का अधिकार दिए जाने के कानून को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट भी यही फैसला ले सकता है। एक मामले में यह भी सामने आया था कि सार्वजनिक  या सुमदाय हित को देखते हुए सरकार किसी की निजी संपत्ति पर (rules for private property)कब्जा कर सकती है।

पीओए ने किया यह दावा


प्रॉपर्टी ऑनर्स एसोसिएशन (POA) सहित कई अन्य लोगों व संस्थाओं ने अधिनियम के 8-A अध्याय का विरोध किया है। यह कई दिनों से जारी है। इसे चुनौती देते हुए पीओए सहित कई अन्य का कहना है कि 8-A अध्याय में किए गए प्रावधान संपत्ति मालिकों के हित में नहीं हैं। ये प्रावधान (Legal provisions regarding private property) किसी संपत्ति के मालिक को उसी की प्रोपर्टी से बेदखल करने का प्रयास करते प्रतीत होते हैं। निजी संपत्ति पर सरकार के कब्जा किए जाने के मामले में मुख्य याचिका पीओए ने 1992 में दायर की थी। इस याचिका को तीन बार तो पांच और सात जस्टिसों वाली बड़ी पीठ के पास भेजा जा चुका है। याचिका दायर करने के करीब 10 साल बाद 20 फरवरी, 2002 को सुप्रीम कोर्ट की नौ-सदस्यीय पीठ के पास इस मामले को भेजा गया था।

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