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property rights: वसीयत लिखे बिना बेटी को पिता की प्रोपर्टी में हिस्सा मिलेगा या नहीं, जानिये सुप्रीम कोर्ट का 51 पन्नों का फैसला

Property Rights: पिता की संपत्ति में बंटवारे का मुद्दा हमेशा विवादों में रहता है। इंडियन कॉन्स्टिट्यूशन (Indian Constitution) के अनुसार बेटे और बेटी दोनों को समान अधिकार दिए गए हैं। लेकिन कईं बार ऐसी स्थितियां आ जाती हैं कि संयुक्त परिवार में रह रहे व्यक्ति की वसीयत लिखे बिना ही मौत हो जाती हैं तो ऐसी स्थिति में बेटों और बेटी के बीच संपत्ति के बंटवारे को झगडा छिड जाता हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने ऐसे मामले पर सुनवाई में अपना फैसला दिया हैं आइए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से... 
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property rights: वसीयत लिखे बिना बेटी को पिता की प्रोपर्टी में हिस्सा मिलेगा या नहीं, जानिये सुप्रीम कोर्ट का 51 पन्नों का फैसला

My job alarm - (women rights) भारत में परिवार और संपत्ति के मामले सदियों से बहुत महत्वपूर्ण रहे हैं। सामाजिक और कानूनी दृष्टिकोण से, संपत्ति अधिकारों ने परिवार में रिश्तों को मजबूत करने या कई बार उनमें दरार पैदा करने का काम किया है। समय के साथ-साथ संपत्ति कानूनों में बदलाव आते रहे हैं, और 2024 में सरकार ने संपत्ति से जुड़े (supreme court) अधिकारों को लेकर कुछ महत्वपूर्ण और बड़े बदलाव किए हैं। खासतौर पर बेटियों के अधिकार और माता-पिता की संपत्ति पर बच्चों के दावे को लेकर नए नियम लागू किए गए हैं। बेटी को अपने पिता के भाई के बेटों की तुलना में संपत्ति का हिस्सा देने में प्राथमिकता दी जाएगी।

 

 

कोर्ट ने यह भी कहा है कि इस तरह की व्यवस्था हिंदू उत्तराधिकार कानून 1956 लागू होने से पहले हुए संपत्ति के बंटवारे पर भी लागू होगी तमिलनाडु की एक महिला की याचिका का निपटारा करते हुए जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने 51 पन्ने का फैसला दिया है। ऐसे में सबसे पहले बात हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम (hindu succession law) 1956 की करते हैं जिसके मुताबिक अगर मरने वाले के परिवार में बेटे और बेटियां हैं तो बेटों द्वारा अपना हिस्सा चुनने के बाद ही बेटियों को हिस्सा मिलेगा। 


लेकिन अगर किसी मामले में अगर बेटी अविवाहित, विधवा या पति द्वारा छोड़ दी गई है तो कोई भी उससे घर में रहने का अधिकार नहीं छीन सकता लेकिन अपनी ससुराल में रह रही विवाहित महिला (daughters share in property) को इसका अधिकार नहीं मिलता है।

 

बेटियों को मिलेगी पिता की संपत्ति -
आपको बता दे कि बेटियों के संपत्ति में अधिकार को लेकर 2005 में मुख्य बदलाव किए गए हैं। तब लड़कियों के हित के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में बदलाव किया गया था। इसके मुताबिक बेटियों को पैतृक संपत्ति में समान हिस्सा पाने का कानूनी अधिकार दिया गया था।
हालांकि अगर बेटी का पिता कानून में संशोधन की (Daughters have rights in ancestral property) तारीख यानी 9 सितंबर, 2005 को जीवित हों तब ही उसकी बेटी अपने पिता की पैतृक संपत्ति में हिस्सेदारी ले सकती थी। अगर उसके पिता की मौत साल 2005 से पहले हो चुकी है तो बेटी का अपनी पैतृक संपत्ति पर हक नहीं माना जाएगा। साल 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस कानून में बदलाव किया। 

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने ये ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए साफ कर दिया की अगर किसी के पिता की मौत 9 सितंबर 2005 के पहले भी हुई हो तब भी बेटी का अपने पैतिृक संपत्ति पर बेटों की तरह ही  हक होगा। साथ ही कोर्ट ने ये (ancestral property) साफ किया था कि अगर पिता ने अपनी संपत्ति खुद ही अर्जित की हो तो पिता की मर्जी है कि वो अपनी संपत्ति बेटी को दे या नहीं, लेकिन पिता की मौत बिना वसीयत लिखे ही हो जाए, तो बेटी उस संपत्ति से भी हिस्सा ले सकती है। 

 

क्या था पूरा मामला -
बता दें कि तमिलनाडु में ऐसा ही एक मामला सामने आया था जिसका निपटारा करते हुए जस्टिस एस अब्दुल नजीर और कृष्ण मुरारी की बेंच ने यह 51 पन्ने का फैसला दिया है। इस मामले में पिता की मृत्यु 1949 में हो गई थी। उन्होंने अपनी स्वअर्जित (self earned property) और बंटवारे में मिली संपत्ति की कोई वसीयत नहीं बनाई थी।


मद्रास हाई कोर्ट ने पिता के संयुक्त परिवार में रहने के (property rights of daughter) चलते उनकी संपत्ति पर उनके भाई के बेटों को अधिकार दिया था। अब सुप्रीम कोर्ट ने पिता की इकलौती बेटी के पक्ष में फैसला दिया है। यह मुकदमा बेटी के वारिस लड़ रहे थे।

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