Property Rights : ससुराल वाले नहीं छीन सकते बहू ये अधिकार, सुप्रीम कोर्ट ने दिया महत्वपूर्ण फैसला
Rights of daughters-in-law in property : भारतीय कानून में बेटियों को संपत्ति में बेटे के समान अधिकार दिए जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहू का ससुराल की संपत्ति या उस घर में कितना अधिकार होता है? इसी मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। आइए नीचे खबर में विस्तार से जानते हैं -

My job alarm - हाल ही में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने सास, ससुर और बहू के बीच के विवाद में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने उच्च न्यायालय के आदेश को पलटते हुए स्पष्ट किया है कि ससुराल के साझा घर में बहू के रहने का अधिकार नहीं छीना जा सकता। अदालत ने कहा कि वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के तहत किसी महिला को त्वरित प्रक्रिया द्वारा घर से निकाला नहीं जा सकता। इस फैसले का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाओं को उनके ससुराल के घर में सुरक्षित आवास प्रदान किया जाए, भले ही वह घर कानूनी रूप से उनके नाम पर न हो।
क्या है पूरा मामला?
यह मामला कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) का है, जहां एक महिला ने उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ याचिका दायर की थी। उच्च न्यायालय ने सास और ससुर के आवेदन पर फैसला सुनाते हुए कहा था कि महिला को ससुराल के घर को खाली करना होगा। इस निर्णय में यह बताया गया था कि घर सास की संपत्ति है और बहू का उस पर कोई अधिकार नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ, जिसमें जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी शामिल थे, ने इस मुद्दे पर गहरी चर्चा की। अदालत ने स्पष्ट किया कि घरेलू हिंसा से महिलाओं की रक्षा कानून, 2005 (PWDVA) का उद्देश्य महिलाओं को उनके ससुराल के घर में रहने का अधिकार प्रदान करना है, ताकि वे सुरक्षित रह सकें। कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि वरिष्ठ नागरिक कानून के तहत त्वरित निकासी का आदेश दिया जाता है, तो यह पीडब्ल्यूडीवी कानून के उद्देश्य को कमजोर करता है।
पीठ ने कहा, 'इसलिए साझे घर में रहने के किसी महिला के अधिकार को इसलिए नहीं छीना जा सकता है कि वरिष्ठ नागरिक कानून 2007 के अनुसार त्वरित प्रक्रिया में खाली कराने का आदेश हासिल कर लिया गया है।' पीठ में जस्टिस इंदु मल्होत्रा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी भी शामिल थीं। कर्नाटक हाईकोर्ट आदेश के खिलाफ एक महिला द्वारा दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा था। हाई कोर्ट ने महिला को (Daughter-in-law's rights) ससुराल के घर को खाली करने का आदेश दिया था। सास और ससुर ने माता-पिता की देखभाल और कल्याण तथा वरिष्ठ नागरिक कानून, 2007 के प्रावधानों के तहत आवेदन दायर किया था और अपनी पुत्रवधू को उत्तर बेंगलुरु के अपने आवास से निकालने का आग्रह किया था।
उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 17 सितंबर, 2019 के फैसले में कहा था कि जिस परिसर पर मुकदमा चल रहा है वो वादी की सास (दूसरी प्रतिवादी) का है और वादी की देखभाल और आश्रय का जिम्मा केवल उनसे अलग रहरहे पति का है।
सास ससुर की खुद बनाई संपत्ति में बहू का कितना अधिकार
देश के कानून के तहत मां-बाप द्वारा स्व-अर्जित संपत्ति (Self Acquired Property) पर बेटों का अधिकार होता है। वे माता-पिता की खुद बनाई प्रोपर्टी पर अपने अधिकार का दावा कर सकते हैं। वहीं बहू सास-ससुर द्वारा अर्जित संपत्ति (property of mother-in-law and father-in-law) पर अपने अधिकार का दावा नहीं कर सकती है। बहू का ऐसी संपत्ति में हिस्सा नहीं माग सकती है।
ऐसे मिल सकता है हिस्सा
पति की पैतृक संपत्ति पर बहुओं का अधिकार (Daughter-in-law's rights) दो प्रमुख परिस्थितियों में होता है। पहली, यदि पति अपनी संपत्ति का अधिकार बहू को ट्रांसफर कर देता है, तो इस स्थिति में बहू को उस संपत्ति पर अधिकार मिल जाता है। दूसरी स्थिति तब होती है जब पति का निधन हो जाता है, तब भी बहू को उस संपत्ति पर अधिकार मिल सकता है।
शादी के बाद, बेटी एक नए परिवार में बहू के रूप में जाती है, लेकिन उसे ससुराल की संपत्ति पर अधिकार नहीं होता। हालांकि, पिता की संपत्ति पर उसका पूरा हक होता है। यह जानना आवश्यक है कि एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में ट्रांसफर होने वाली संपत्ति को पैतृक संपत्ति (ancestral property) माना जाता है।
जब बंटवारा होता है, तो पैतृक संपत्ति (ancestral property) स्व-अर्जित संपत्ति में बदल जाती है। इस तरह, बहुओं को अपने ससुराल की संपत्ति में हिस्सा मांगने का अधिकार नहीं होता, जबकि पिता की संपत्ति पर उनके पास पूरा अधिकार होता है।