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property division law : प्रोपर्टी बंटवारे में जीजा कर सकता है खेल, जान लें संपत्ति बंटवारे का कानून

Property Law in India :देश में संपत्ति से संबंधित विवादित मामले अकसर सामने आते है। हर दूसरें घर में आपको प्रोपर्टी को लेकर कलेश देखने को मिल ही जाएगा। खासकर जब बात प्रोपर्टी के बंटवारे को लेकर होती है तो विवाद उत्पन्न होना लाजमी है। आज हम प्रोपर्टी के बंटवारे और उसमें बेटी के हक को लेकर आपके साथ जानकारी साझा करने वाले है। जो आपके लिए जानना बेहद जरूरी है।

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property division law : प्रोपर्टी बंटवारे में जीजा कर सकता है खेल

My job alarm (ब्यूरो) : इस बात में कोई दोराय नही है कि देश में प्रोपर्टी से संबंधित नियमों (Property rules in the country) को लेकर जागरूकता नही है। लोग अकसर जानकारी के अभाव के चलते अपने अधिकारों से वंचित रह जाते  है। खासकर जब बात आए संपत्ति और जमीन के बंटवारे की तो बंटवारा अक्सर विवाद (property dispute) की वजह बन जाती है। परिवार में संपत्ति का बंटवारा एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। अब मुद्दे तक तो ठीक लेकिन क्या आपने कभी ये सोचा है कि इस बंटवारे में बेटियों के क्या हक होते है। एक और  सवाल ये भी है की बेटियों का संपत्ति पर अधिकार होता भी है या नहीं।

 

अगर किसी व्यक्ति की मृत्यु हो जाए और उसकी कोई वसीयत (death without will) ना ही तो उसके बेटे और बेटी में संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा। अगर बेटी विवाहित है उस स्थिति में प्रक्रिया क्या होती है। वैसे अगर विवादित मामलों की बात की जाए तो बेटियों के पति यानि कि आपके जीजा भी विवाद की कड़ी बन सकते है। इसलिए प्रोपर्टी के  बंटवारे के नियमों और कानूनों (knowledge of property rules) के बारे में जानकारी रखना बेहद आवश्यक हो जाता है। 

 


बंटवारे में क्या होता है बेटी का हिस्सा?

 


इस सवाल के जवाब में औद्योगिक विकास प्राधिकरण (Industrial Development Authority) के ओएसडी अरूण सिंह ने बताया कि यूपी राजस्व संहिता के अनुसार विरासत में अविवाहित बेटी और बेटों में संपत्ति बराबर बांट (Equal distribution of property between daughters and sons) दी जाती है। इसमें खास बात ये है कि बेटी अपने विवाह के बाद अगर चाहे तो अपने हिस्से की संपत्ति को छोड़ सकती है। इसके लिए बेटी पर दबाव नहीं बनाया जा सकता है। वो अपनी मर्जी से अपनी जमीन रख या छोड़ सकती है। 


रजामंदी से होगा बंटवारा


बंटवारे के मामले में ये बात तो साफ है कि अगर बंटवारे से जुड़ा विवाद उपजिलाधिकारी यानी एसडीम कोर्ट (sdm court) में पहुंचता है तो वहां सरकारी दस्तावेज में जितने भी हिस्सेदारों का नाम लिखा होता है, उन सबकी रजामंदी जरुरी होती है। खासकर इसमें बेटी और बहन की रजामंदी लेना तो बेहद जरुरी होता है। वो अपनी मर्जी से अपना हिस्सा छोड़ भी सकती है या अपने हक का दावा भी कर (married daughter property rights) सकती है। इसके बाद ही प्रक्रिया आगे पहुंच पाती है।

 


आपकी जानकारी के लिए बता दें कि  कोर्ट के भी कई फैसलों में इस बात को साफ कर दिया गया है कि संपत्ति में बेटी का बराबर का अधिकार होता है। किसी भी बंटवारे (Equal distribution rights of daughter) से पहले उनकी रजामंदी जरुरी होती है। उसकी हां या ना के बिना बंटवारे का मामला आगे प्रोसेस नही करता है। इसलिए हर एक दावेदार की रजामंदी बंटवारे में काफी मायने रखती है।

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