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High Court Decision : क्या पिता को भी देना होगा गुजारा भत्ता, बाप बेटे के विवाद में हाईकोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय

Jharkhand High Court Order :बाप-बेटे के जमीनी और आपसी विवाद अक्सर सामने आते रहते हैं। कई मामलों में देखा गया है कि पिता को बेटे द्वारा उपेक्षित किया जाता है। जीवन के आखिरी पड़ाव पर बुढ़ापे में पिता अपने बेटे पर निर्भर हो जाता है तो पिता को भरण पोषण के लिए मोहताज कर दिया जाता है। ऐसे ही एक मामले में कोर्ट ने निर्णय सुनाया है। 

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High Court Decision : क्या पिता को भी देना होगा गुजारा भत्ता, बाप बेटे के विवाद में हाईकोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय

My job alarm - (high court) माता-पिता का दर्जा सबसे ऊंचा माना जाता है। अनेक मामलों में ऐसा भी देखा जाता है कि माता-पिता को परित्यक्त समझा जाने लगता है यानी बुढ़ापे में उन्हें लाचार छोड़ दिया जाता है। एक मामले में कोर्ट ने पिता के भरण पोषण के लिए 3000 रुपये हर माह गुजारा भत्ता दिए जाने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी टिप्पणी की है कि एक बेटे के द्वारा ऐसा किया जाना किसी सूरत में सही नहीं है, बेशक माता-पिता जैसे भी हैं, पुत्र का अपना पुत्रधर्म निभाते हुए पितृऋण चुकाना ही होगा। आइये जानते हैं इस निर्णय के बारे में विस्तार से इस खबर में।

 

फैमिली कोर्ट के फैसले पर लगाई हाई कोर्ट ने मुहर

 


पिता-पुत्र के एक मामले में झारखंड हाई कोर्ट ने बेटे को अपने बुजुर्ग पिता को गुजारा भत्ता देने के कड़े निर्देश दिए हैं। हाई कोर्ट ने यह फैसला फैमिली कोर्ट द्वारा दिए गए निर्णय (faimily court decision for maintenance allowance to father) को सही ठहराते देते हुए सुनाया है। हाई कोर्ट से पहले यह मामला फैमिली कोर्ट में था। फैमिली कोर्ट ने बेटे को आदेश दिया  था कि उसे अपने पिता को हर महीने 3000 रुपये भरण-पोषण के लिए देने होंगे। इसके बाद मनोज नाम का व्यक्ति इस फैसले के खिलाफ हाई कोर्ट गया था, वहां पर भी उसे वही फैसला सुनाया गया। 

 

 

यह कहा हाई कोर्ट ने


मामले के अनुसार झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस सुभाष चंद ने फैसले सुनाते हुए कोर्ट ने बताया कि दोनों पक्षों के सुबूतों को जानकर पता चला कि  पिता के पास कुछ खेत की जमीन है, लेकिन उस पर खेती करने में असमर्थ  है। फिलहाल पिता अपने बड़े बेटे के पास रहते हुए उसी पर अपने भरण पोषण के लिए निर्भर है। यह भी सामने आया है कि पिता ने सारी संपत्ति में से छोटे बेटे मनोज को बड़े के बराबर हिस्सा भी दिया है। इसके बावजूद उसका छोटा बेटा कई साल से अपने पिता का भरण-पोषण नहीं कर रहा है। कोर्ट का कहना है कि बेशक पिता कुछ कमाते हों, लेकिन बुजुर्ग पिता की उपेक्षा नहीं की जा सकती। उसके भरण-पोषण का जिम्मा उसके पुत्र को उठाना ही होगा। यह पुत्रधर्म भी है।


माता-पिता का महत्व भी बताया


कोर्ट ने इस फैसले में हिंदू धर्म में माता-पिता के महत्व की व्याख्या को दोहराया तथा महाभारत (mahabharat) तक के उदाहरण दे डाले। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता की कमजोरी-मजबूती पुत्र की कमजोरी-मजबूती होती है तथा माता-पिता का सुख-दुख पुत्र का सुख दुख होता है। इसलिए पुत्र माता-पिता से ही हैं। पिता को हमेशा ईश्वर से भी ऊंचा दर्जा दिया गया है। बेशक कोई बुराई हो या अच्छाई। माता-पिता की अच्छाई और बुराई उनके बेटे को विरासत में मिलती हैं। हर किसी पर अपने जन्म का ऋण होता है। इसमें मातृ ऋण व पितृ ऋण (Mother's debt and father's debt) होते हैं। इन्हें चुकाना ही होता है। 

छोटे बेटे के  खिलाफ यह दी थी शिकायत 


हाई कोर्ट से पहले यह मामला फैमिली कोर्ट (faimily court) में था। याची पिता ने अपने छोटे बेटे के खिलाफ भरण-पोषण न किए जाने की शिकायत की थी। इसके बाद बेटे पर आपराधिक प्रक्रिया संहिता की धारा 125 लगाई गई। पिता ने याचिका में यह भी बताया था कि उसके दो बेटों में से छोटा बेटा मारपीट तक करता है, उसका भरण पोषण भी नहीं कर रहा। 


बड़े बेटे को बताया सही


याचिकाकर्ता पिता ने छोटे बेटे को जहां झगड़ालू बताया, वहीं बड़े बेटे के बारे में कहा कि वही उसे आर्थिक सहायता देता है। याची पिता ने यह भी दावा किया था कि उन्होंने कई साल पहले दोनों बेटों में बराबर-बराबर जमीन बांट दी थी। इसके बावजूद उसकी उपेक्षा की जा रही है। पिता ने याचिका में यह भी दावा किया था कि जो बेटा उसका भरण पोषण करने से इंकार कर रहा है वह 50,000 रुपये हर महीने कमाता है और बराबर बांटकर दी गई जमीन से भी कमाई आती है। इसलिए छोटे बेटे से 10,000 रुपये हर महीना गुजारा भत्ता (maintenance allowance rules) दिलाया जाए। इस पर फैमिली कोर्ट ने उसके बेटे को 3 हजार रुपये हर महीना गुजारा भत्ता अपने पिता को देने के आदेश दिए थे। 


महाभारत के प्रसंग का दिया हवाला


हाई कोर्ट के इस निर्णय (High Court's decision regarding maintenance) में खास बात यह रही कि हाई कोर्ट के जस्टिस चंद ने फैसले के दौरान में महाभारत के एक प्रसंग का जिक्र भी किया। इस प्रसंग में यक्ष युधिष्ठिर संवाद को रखा गया। उन्होंने कहा कि महाभारत में यक्ष द्वारा युधिष्ठिर से पूछे गए सवाल 'स्वर्ग से भी ऊँचा क्या है?' का जवाब देते हुए युधिष्ठिर ने पिता को स्वर्ग से ऊंचा बताया था। इसका हवाला देते हुए कोर्ट ने याची पिता की फरियाद पर बेटे को अपना पुत्र धर्म निभाते हुए 3 हजार रुपये प्रति महीना गुजारा भत्ता (maintenance allowance to father) दिए जाने का आदेश सुनाया है।

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