High Court का अहम फैसला, लिव इन में नहीं रह सकते इस उम्र वाले
Live in Relationship law in India: इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हाल ही में लिव-इन रिलेशनशिप (Allahabad High Court) के एक मामले में बेहद महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। अदालत ने फैसला सुनाते हुए स्पष्ट किया कि कानून को ध्यान में रखते हुए कुछ विशेष उम्र के लोग इस तरह के रिश्ते में नहीं रह सकते है। दरअसल, यह फैसला एक कपल की याचिका पर सुनवाई के दौरान आया। बता दें, इस निर्णय ने युवाओं के रिश्तों की नैतिकता और कानूनी पहलुओं पर नई बहस को जन्म दिया (high court decision on live in) है। आइए विस्तार से जानते है इस पूरे मामले के बारे में-
My job alarm (ब्यूरो)। हाल ही में, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एक ऐसे मामले पर सुनवाई की, जिसने युवाओं के बीच लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा पर नई बहस (live in relationship law) छेड़ दी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि कुछ बुनियादी मानदंड हैं जो ऐसे संबंधों की अनुमति देने से पहले विचार में लेने चाहिए। कोर्ट का यह निर्णय समाज में जिम्मेदारियों और नैतिकता के महत्व को उजागर करता है, खासकर जब बात युवा पीढ़ी की होती है।
क्या था पूरा मामला?
इस मामले में 17 वर्षीय युवक और उसकी 19 वर्षीय लिव-इन पार्टनर ने याचिका दायर की थी। दोनों ने कोर्ट से गुहार लगाई थी कि उनके लिव-इन संबंध (live in relationship rules) को मान्यता दी जाए। लेकिन अदालत ने उनकी याचिका को खारिज कर दिया, यह कहते हुए कि ऐसा करना उचित नहीं है।
अदालत ने ये कहां
अदालत ने अपने निर्णय में कहा कि लिव-इन संबंध को विवाह की श्रेणी में रखने के लिए कई मानदंड होते हैं। इनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि एक व्यक्ति को वयस्क (live in relationship age) होना चाहिए, जो कि 18 वर्ष से अधिक की आयु का हो। इसलिए, 17 वर्षीय लड़का इस संबंध में नहीं रह सकता है।
जानें कानूनी दृष्टिकोण
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जो व्यक्ति 18 वर्ष से कम (live in relationship legal age) है, वह एक वयस्क लड़की के साथ लिव-इन संबंध में रहने का आधार बनाकर संरक्षण की मांग नहीं कर सकता। इस प्रकार, वह किसी भी आपराधिक मामले को रद्द करने की मांग नहीं कर सकता, क्योंकि उसकी गतिविधियाँ कानून के तहत अवैध हैं।
समाज के हित में निर्णय
अदालत ने आगे कहा कि यदि ऐसे संबंधों को अनुमति दी गई, तो यह समाज के हित में नहीं होगा। कोर्ट ने ऐसे मामलों में कानून की शरण लेने की प्रक्रिया में किसी प्रकार की रियायत (live in relationship age limit hindi) देने से इनकार किया, यह कहते हुए कि ऐसे व्यवहार को मान्यता नहीं दी जा सकती।
प्राथमिकी और याचिका का निपटारा
दोनों याचिकाकर्ताओं ने एक साथ अदालत में अनुरोध किया था कि लड़के के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद्द किया जाए। यह प्राथमिकी लड़की के परिजनों द्वारा दर्ज कराई गई थी, जिसमें आरोप था कि लड़के ने लड़की का अपहरण किया (live in relationship legal rights) है। याचिका में यह भी कहा गया था कि लड़के को गिरफ्तार नहीं किया जाए।
कोर्ट का अहम फैसला
इस फैसले ने स्पष्ट किया है कि कम उम्र के व्यक्तियों के लिए लिव-इन संबंधों की अनुमति नहीं दी जा सकती। यह निर्णय कानून की दृष्टि से और समाज के हित में भी उचित है। इससे यह भी संकेत मिलता है कि अदालत ऐसे मामलों में जिम्मेदारी से निर्णय लेने को प्राथमिकता देती है।