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ससुर की प्रोपर्टी में दामाद के अधिकार पर High Court का बड़ा फैसला

Property Right : भारत में संपत्ति के मालिकाना हक और बंटवारे को लेकर विवाद अक्सर देखने को मिलते हैं। परिवार के सदस्यों के बीच संपत्ति को लेकर लड़ाई-झगड़े होते रहते हैं। हाल ही में  एक ससुर और दामाद के बीच संपत्ति विवाद का मामला सामने आया, जिस पर  हाईकोर्ट ने सुनवाई की। इस मामले में अदालत ने ससुर की संपत्ति पर दामाद के दावे पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। कोर्ट ने यह साफ किया है कि ससुर की संपत्ति में दामाद का कोई हक होता है या नहीं? 

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ससुर की प्रोपर्टी में दामाद के अधिकार पर High Court का बड़ा फैसला

My job alarm -  उच्च न्यायालय (High Court) ने हाल ही में एक संपत्ति विवाद मामले में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया, जिसमें एक दामाद के दावे को खारिज कर दिया गया। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि एक दामाद का अपने ससुर की संपत्ति (father-in-law's property) पर कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता, भले ही उसने उस संपत्ति के निर्माण में वित्तीय योगदान किया हो। यह निर्णय न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि सामाजिक परिप्रेक्ष्य में भी गहरा अर्थ रखता है।

 

कन्नूर के डेविस राफेल और उनके ससुर हेंड्री थॉमस के बीच चल रहे इस विवाद ने एक महत्वपूर्ण कानूनी पहलू को उजागर किया है। इस मामले में डेविस ने अपने ससुर की संपत्ति पर दावा  (Son-in-law's right on father-in-law's property) करने की कोशिश की, जिसे कन्नूर के पय्यानुर उप न्यायालय ने खारिज कर दिया। यह मामला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह पारिवारिक रिश्तों और संपत्ति के अधिकारों के बीच के रिश्ते को भी दर्शाता है।

 

मामले का पृष्ठभूमि

 

 

डेविस राफेल ने अपने ससुर हेंड्री थॉमस की संपत्ति (Property Rights) पर दावा करते हुए अदालत में याचिका दायर की थी। हेंड्री ने डेविस के खिलाफ मुकदमा दायर किया, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि डेविस उनकी संपत्ति पर अतिक्रमण कर रहा है और उनके घर के कब्जे तथा आनंद में हस्तक्षेप कर रहा है। यह मामला तब उठाया गया जब हेंड्री ने स्थायी निषेधाज्ञा की मांग की, ताकि डेविस को उनकी संपत्ति से बाहर रखा जा सके।

 

 

हेंड्री का तर्क

 

हेंड्री थॉमस ने अदालत में यह दावा किया कि उन्होंने कन्नूर में सेंट पॉल चर्च के लिए एक गिफ्ट डीड के माध्यम से अपनी संपत्ति प्राप्त की थी। उनका कहना था कि उन्होंने अपनी मेहनत की कमाई से इस घर का निर्माण किया है, और डेविस को इस संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है। हेंड्री ने स्पष्ट रूप से कहा कि उनका दामाद इस संपत्ति का अवैध रूप से लाभ उठा रहा है और इससे उनके परिवार के आनंद में बाधा उत्पन्न हो रही है।

 

डेविस का तर्क

 

डेविस राफेल ने अपनी याचिका में यह दावा किया कि उन्होंने हेंड्री की इकलौती बेटी से शादी की थी और शादी के बाद उन्हें परिवार का सदस्य माना गया। उनका तर्क यह था कि इस विवाह के कारण उन्हें घर में रहने और संपत्ति पर अधिकार मिलना चाहिए। इसके अलावा, डेविस ने यह भी कहा कि संपत्ति का टाइटल संदिग्ध है, क्योंकि यह गिफ्ट डीड चर्च के अधिकारियों द्वारा परिवार के लिए एग्जीक्यूट की गई थी। उनका कहना था कि इन सब कारणों के आधार पर, उन्हें घर में रहने का अधिकार मिलना चाहिए।

 

हाईकोर्ट का निर्णय

 

इस मामले में उच्च न्यायालय (High Court Decision) ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद निर्णय दिया। न्यायमूर्ति एन अनिल कुमार ने अपील को खारिज करते हुए कहा कि डेविस का अपने ससुर की संपत्ति पर कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता। जज ने स्पष्ट किया कि भले ही डेविस ने संपत्ति में कुछ पैसा खर्च किया हो, लेकिन यह उसे संपत्ति पर अधिकार नहीं देता।

अदालत ने कहा, "जब वादी (ससुर) के पास प्रॉपर्टी का कब्जा (possession of property) हो, तो प्रतिवादी (दामाद) ये दलील नहीं दे सकता कि उसे वादी की बेटी के साथ शादी के बाद परिवार के सदस्य के रूप में अपनाया गया था।" जज ने यह भी कहा कि दामाद को परिवार का सदस्य मानना मुश्किल है।

 

इसके अलावा, अदालत ने यह भी कहा कि भले ही डेविस को वादी के घर में रहने की अनुमति मिल सकती है, लेकिन उसे अपनी ससुर की संपत्ति (father-in-law's property) पर कोई कानूनी अधिकार नहीं हो सकता।
 

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