Delhi High Court: आर्थिक तौर पर पत्नी है सक्षम तो क्या फिर भी पति को देना होगा गुजारा भत्ता, जानिये हाईकोर्ट का बड़ा फैसला

My job alarm - (Delhi High Court) तालाक की बात आसान नहीं होती इस बात में कोई दोहराई नहीं हैं कि इस तरह के मामलों में सबसे अधिक भार एक (Raymond Group) पक्ष पर ज्याद पड़ता है। इसी को लेकर एक मामला हाल ही में दिल्ली हाई कोर्ट में आया हैं जिसके फैसले के अनुसार एक मामले की सुनवाई करते हुए ‘भरण-पोषण’ को लेकर बड़ी बात कही।
महिला को नहीं दिया जाएगा मेंटनेंस -
दिल्ली हाई कोर्ट की खंडपीठ ने तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान पति-पत्नी को खुद काम करने पर जोर दिया है। इस (Gautam Singhania) सुनवाई के दौरान जस्टिस वी. कामेश्वर राव और अनूप कुमार मेंदीरत्ता की बेंच ने एक महिला के भरण-पोषण के दावे को खारिज कर दिया। कोर्ट ने खारिज करते हुए कहा कि महिला शिक्षित है और अपने दम पर काम करने में सक्षम है।
अपनी मर्जी से बेरोजगार है महिला
हाई कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई के दौरान कहा कि जब तक उनके पति ने तलाक का केस दायर नहीं किया तब तक वह काम कर रही थीं। ऐसे में वह नौकरी करने में सक्षम है और महिला अपनी मर्जी से (Raymond Stock) बेरोजगार है। कोर्ट ने महिला को सलाह देते हुए साफ कहा कि गुजारा भत्ता पाना और दूसरे पक्ष पर आर्थिक बोझ पैदा करना कोई कारण नहीं माना जा सकता।
फैमिली कोर्ट के फैसले को दिया पलट -
आपको बता दें कि फैमिली कोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया था, जिसमें उसने तलाकशुदा पति को अपनी पूर्व पत्नी को (Raymond AGM) एक निश्चित गुजारा भत्ता देने की सिफारिश की थी, जिसके बाद पति ने हाई कोर्ट में अपनी बात रखी और हाई कोर्ट ने फैमिली कोर्ट के फैसले को पलट दिया गया।
क्या है कहता भरण-पोषण का कानून?
हमारे देश में अलग-अलग धर्मों के लोगों को अपने रीति-रिवाजों के अनुसार शादी करने की इजाजत है. इसलिए तलाक के प्रावधान भी अलग-अलग हैं. हिंदुओं के बीच विवाह व्यवस्था हिंदू विवाह अधिनियम द्वारा निर्देशित होती है। यहां तलाक की स्थिति में न केवल पति बल्कि पत्नी को भी पति से भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है जबकि विशेष विवाह अधिनियम के तहत होने वाली शादियों में केवल पत्नी को ही भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने का अधिकार है।