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High Court : पिता के घर में बेटे का कितना अधिकार, दिल्ली हाईकोर्ट ने किया साफ

High Court Decision :संपत्ति के अधिकतर मामलों में अक्सर पिता व बेटे के बीच विवाद ही सामने आते हैं। इन विवादों में आमतौर पर माता-पिता की प्रोपर्टी में बेटों की ओर से हक जताने की बात कही जाती है। इस तरह के विवाद में दिल्ली हाई कोर्ट (Delhi High Court) ने बड़ा फैसला सुनाया है। काेर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि माता-पिता की प्रोपर्टी या घर में बेटे का कितना हक होता है। आइये जानते हैं इस फैसले के बारे में। 

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High Court : पिता के घर में बेटे का कितना अधिकार, दिल्ली हाईकोर्ट ने किया साफ

My job alarm - (property news): आए दिन कोर्ट में संपत्ति को लेकर अलग-अलग मामले आते रहते हैं। दिल्ली हाई कोर्ट में भी संपत्ति से जुड़ा एक विवाद ऐसा रहा, जिसमें बेटों की ओर से माता-पिता की प्रोपर्टी में हक जताने का दावा किया गया था, साथ ही घर में रहने के अधिकार होने की बात कही थी। इस मामले में निचली अदालत में आए फैसले (delhi high court decision)के खिलाफ याचिका दायर की गई थी। मामले की तह में जाने के बाद दिल्ली हाई कोर्ट ने अपना अंतिम फैसला सुनाया है। फैसले के अनुसार जानिये माता-पिता की प्रॉपर्टी में बेटे का कितना हक होता है।  

 

कोर्ट ने सुनाया यह फैसला

 


इस मामले को देखते हुए कोर्ट ने कहा है कि बेटे (son right in father property) को अपने माता-पिता के घर में रहने का अधिकार सिर्फ उनके माता पिता मर्जी पर ही दिया जाता है। अगर कोई माता-पिता अपने बेटों को घर में रहने की इजाजत देता है तो इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं कि उस घर पर बेटों का अधिकार होगा। 
अगर माता-पिता (parents-son property rights) और बेटे के बीच में संबंध बिगड़ जाए तो भी बेटा अपने माता-पिता की मर्जी पर ही घर में रह सकता है। कोर्ट के अनुसार माता-पिता अपनी कमाई से कोई घर बनाते हैं तो इस घर पर बेटे या बेटों का का कोई अधिकार नहीं होता है। फिर वे चाहे शादीशुदा हो या न हों। कोई भी बेटा उस घर में जब तक ही रह सकता है जब तक उनके माता-पिता उन्हें वहां रहने की अनुमति देते हैं। 

जानिये क्या है कोर्ट का कहना-

कोर्ट ने  इस मामले में बेटे और बहू द्वारा दी गई याचिका को खारिज कर दिया है। न सिर्फ हाई कोर्ट में बल्कि निचली अदालत (trial court decision in property) ने भी फैसला माता-पिता के पक्ष में ही दिया गया था। मामले के अनुसार माता-पिता ने निचली अदालत को बताया  था कि उनके दोनों ही बेटों और बहुओं ने उनको परेशान किया हुआ था। पारिवारिक झगड़ों को लेकर कई बार माता-पिता ने इस संबंध में पुलिस को भी शिकायत की थी। इसके साथ ही माता-पिता ने अपने दोनों ही बेटों को प्रॉपर्टी से बेदखल भी कर दिया था।

ट्रायल कोर्ट में लगाई थी याचिका 

माता-पिता द्वारा लगाए गए आरोपों को गलत ठहराते हुए दोनों ही बेटों ने अपने माता-पिता के खिलाफ ट्रायल कोर्ट में याचिका को दर्ज कराया था। ट्रायल कोर्ट में बेटों ने दावा किया कि उन बेटों की भी प्रॉपर्टी (property rights) में पूरी हिस्सेदारी है। यह भी तर्क दिया गया कि उस प्रोपर्टी को खरीदने और बनाने में  दोनों भाइयों की पूरी भूमिका रही है। इसके बाद ट्रायल कोर्ट ने भी फैसला माता-पिता के पक्ष में ही दिया था। जिसका विरोध करके ही एक बेटा और बहू हाई कोर्ट जा पहुंचे थे।

हाई कोर्ट में साबित नहीं हो सकी यह बात

कोर्ट ने फैसला देते हुए कहा कि बेटा और बहू दोनों ही कोर्ट में इस बात को साबित नहीं कर पाए कि उन लोगों ने भी प्रॉपर्टी को खरीदने व बनाने में अपनी हिस्सेदारी (Son's right in self-acquired property) दी है। वहीं दूसरी ओर माता-पिता ने सभी कागजी सबूतों को दिखाकर इस बात को साबित किया कि वे दोनों ही इस प्रॉपर्टी के मालिक हैं। ऐसे में कोर्ट ने माता-पिता के हक में फैसला सुनाया कि यह प्रोपर्टी बेटों के माता-पिता ने अपनी कमाई से खरीदी है, इसलिए इस पर उनका ही मालिकाना हक (Ownership rights) रहेगा।

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