My job alarm

Cheque Bounce : चेक बाउंस होने पर किस धारा के तहत मिलती है सजा, क्या हो सकती है जेल, जानिए नियम-कानून

Cheque Bounce Rules :चेक के जरिए भुगतान तो लगभग हर कोई करता है लेकिन इसके नियमों के बारे में अधिकतर लोग जानते ही नही है। सबसे पहली बात तो लोगों में इस जानकारी का अभाव है कि आखिर चेक बाउंस (Reason of Cheque Bounce) क्यो होता है। इसके बाद आती है ये बात की क्या इसके लिए भी सजा का प्रावधान है? अगर हां, तो चेक बाउंस होने पर किस धारा के तहत आपको क्या सजा मिल सकती है। क्या चेक बाउंस होने पर जेल भी हो सकती है। इन सब सवालो के जवाब आज हम आपको इस खबर के माध्यम से देने वाले है। आइए नीचे खबर में जान लें विस्तार से...
 | 
Cheque Bounce : चेक बाउंस होने पर किस धारा के तहत मिलती है सजा, क्या हो सकती है जेल, जानिए नियम-कानून

My job alarm -  (Punishment on cheque bounce) देश में कोई ऐसा व्यक्ति नही है जिसने कि बैंक में खाता न खुलवा रखा हो। आजकल लोग अपने बच्चों का भी बेंक में खाता खुलवाते है। बैंक में खाता खुलवाने के साथ ही आपको कई सुविधाएं भी मिलती है या आप इन्हे खुद ले सकते है। इनमें एटीएम कार्ड, पासबुक और चेक बुक जैसी सुविधाएं शामिल (Bank facilities to customers) है। बैंक में जब आप खाता खुलवसते हे तो आपको उसके साथ ही सभी नियमों के बारे में भी जान लेना जरूरी है ताकि आगे चलकर आप किसी परेशानी में न फंसे। अगर आप चेक बुक का इस्तेमाल करते है तो चेक जारी (bank cheque issue rules) करने से लेकर हर चीज के बारे मे आपको पता होना चाहिए। चेक बाउंस के बारे आपने सुना तो जरूर होगा। 


चेक बाउंस का मतलब 


सबसे पहले तो आप ये जान लें कि चेक बांउस (what is cheque bounce) होना आखिर होता क्या है। चेक बाउंस का मतलब है कि आपने किसी व्यक्ति को 10,000 रुपये का चेक साइन करके दिया। वह व्यक्ति अपने बैंक में गया और वह रकम अपने खाते में डलवाने के लिए चेक लगा दिया। बैंक ने पाया कि जिस व्यक्ति ने (आपने) चेक दिया है, उसके खाते में 10,000 रुपये हैं ही नहीं। ऐसे में जिसे पैसा मिलना चाहिए था, उसे नहीं मिला और बैंक को अलग से मैनपावर लगानी पड़ी। इस तरह के चेक रिजेक्ट हो जाने को ही चेक बाउंस होना कहा जाता है। 


तो ऐसेस में आप ये ध्यान रखें, जब भी चेक काटें तो अपने बैंक अकाउंट (Bank account) में मौजूदा रकम से कम काटें। अगर चेक बाउंस हुआ तो उसके लिए कानून में कड़ी सजा का प्रावधान है, क्योंकि भारत में चेक बाउंस होने को वित्तीय अपराध (Financial Crime) माना गया है। 


कौन सी लगती है धारा?


आपकी जानकारी के लिए बता दें कि चेक बाउंस का केस (cheque bounce case) परिवादी के परिवाद पर निगोशिएबल इंट्रूमेंट एक्ट, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत दर्ज करवाया जाता है। वैसे भी चेक बाउंस के मामले आए दिन सामने आते हैं और अदालतों में इस तरह के केस लगातार बढ़ने लगे हैं। इससे जुड़े ज्यादातर मामलों में राजीनामा नहीं होने पर अदालत द्वारा अभियुक्त को सज़ा दी जाती है। चेक बाउंस के बहुत कम केस ऐसे होते हैं जिनमे अभियुक्त बरी किए जाते है। इसलिए यह जानना बेहद जरूरी है कि इस मामले में क्या कानूनी प्रावधान (legal provisions on cheque bounce) हैं?


किस धारा के तहत चलता है केस?


जारी रिपोटर्स के अनुसार, चेक बाउंस के मामले में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (Negotiable Instruments Act in case of check bounce) ,1881 की धारा 138 के तहत अधिकतम 2 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है। हालांकि, सामान्यतः अदालत 6 महीने या फिर 1 वर्ष तक के कारावास की सजा सुनाती है। इसके साथ ही अभियुक्त को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 357 (Section 357 of the Code of Criminal Procedure)  के अंतर्गत परिवादी को प्रतिकर दिए जाने निर्देश भी दिया जाता है। प्रतिकर की यह रकम चेक राशि की दोगुनी हो सकती है।


चेक बाउंस को लेकर सजा होने पर कैसे करें अपील?


आपको ये जान लेना बेहद जरूरी है कि चेक बाउंस का अपराध (crime of check bounce) 7 वर्ष से कम की सज़ा का अपराध है इसलिए इस अपराध को जमानती अपराध बनाया गया है। इसके अंतर्गत चलने वाले केस में अंतिम फैसले तक अभियुक्त को जेल नहीं होती है। अभियुक्त के पास अधिकार होते हैं कि वह आखिरी निर्णय तक जेल जाने से बच सकता है। चेक बाउंस केस में अभियुक्त सजा को निलंबित किए जाने के लिए गुहार लगा सकता है। इसके लिए वह ट्रायल कोर्ट के सामने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 389(3) (Section 389 of the Code of Criminal Procedure)  के अंतर्गत आवेदन पेश कर सकता है।


चूंकि किसी भी जमानती अपराध में अभियुक्त के पास बेल लेने का अधिकार होता है इसलिए चेक बाउंस (cheque bounce rules) के मामले में भी अभियुक्त को दी गई सज़ा को निलंबित कर दिया जाता है। वहीं, दोषी पाए जाने पर भी अभियुक्त दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 374(3) के प्रावधानों के तहत सेशन कोर्ट के सामने 30 दिनों के भीतर अपील कर सकता है।


केवल इतना ही नही, चेक बाउंस केस में निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट एक्ट (Negotiable Instruments Act) ,1881 की धारा 139 में 2019 में अंतरिम प्रतिकर जैसे प्रावधान जोड़े गए। इसमें अभियुक्त को पहली बार अदालत के सामने उपस्थित होने पर परिवादी को चेक राशि की 20 प्रतिशत रकम दिए जाने के प्रावधान है। हालांकि, बाद में सुप्रीम कोर्ट (supreme court) ने इसे बदल कर अपील के समय अंतरिम प्रतिकर दिलवाए जाने के प्रावधान (punishment on cheque bounce) के रूप में कर दिया है। अगर अभियुक्त की अपील स्वीकार हो जाती है तब अभियुक्त को यह राशि वापस दिलवाई जाती है।


इसलिए चेक जारी करने से पहले आपको बहुत सी जरूरी बातों के बारे में जानकारी जरूर होनी चाहिए ताकि आपसे कोई गलती न हो और चेक बाउंस होने से बचा जा सके। 
 

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now