ancestral property rights : दादा, पिता या भाई प्रोपर्टी में न दे हिस्सा, इस कानून के तहत ले सकते हैं अपना हक
Ancestral property News : कई बार वैचारिक मतभेद या अन्य पारिवारिक कारणों से माता-पिता का अपने ही बच्चों से संपत्ति को लेकर विवाद बढ़ जाता है। अक्सर मामला इतना पेचीदा हो जाता है कि दादा व पिता अपने ही दूसरे बेटे को पैतृक संपत्ति में हक न दिए जाने की बात पर अड़ जाते हैं। ऐसे में आप अपने हक से खुद को वंचित रहता देखकर क्या करें क्या न करें की स्थिति में पाते हैं। यहां पर आपको इसी बारे में बताने जा रहे हैं कि पैतृक संपत्ति (Ancestral property rules) में आपका हिस्सा दबाए जाने की बात आती है तो आप कैसे उसे हासिल कर सकते हैं। खबर में यह भी जानेंगे कि इस बारे में कानून में क्या प्रावधान है।
My job alarm - (Property Rights) आमतौर पर संपत्ति के विवाद कोर्ट में आते ही रहते हैं। खासकर पैतृक संपत्ति के मामले अधिक उलझे हुए होते हैं। पैतृक संपत्ति (Paitrik sampatti) पर विवादों की बढ़ती संख्या का एक कारण यह भी है कि अधिकतर लोगों को यह पता ही नहीं होता कि पैतृक संपत्ति यानी पूर्वजों से मिली संपत्ति पर किसका कितना हक है। इसी कारण समाज में भी पैतृक संपत्ति (What is Patrik Sampatti?) पर विवाद बढ़ते जा रही हैं। ऐसे में हर किसी के लिए यह जानना जरूरी है कि पूर्वजों से मिली संपत्ति में कानून के अनुसार किसका कितना हक या हिस्सा होता है।
विवाद बढ़ने पर यह आती है दिक्कत
हालांकि अब एकल परिवार की संस्कृति को बढ़ावा मिल रहा है, लेकिन कुछ साल पहले तक देश में संयुक्त परिवार की परंपरा मजबूत थी। इसमें कई पीढ़ियों तक एक ही छत के नीचे बसेरा होता था। संपत्ति (Rights of daughter and son in patrik sampatti) को लेकर आजकल विवाद आम हो गए हैं। यहां तक कि घर-परिवार के लोग मनमानी पर उतर आते हैं तो बात कोर्ट तक पहुंच जाती है। प्रोपर्टी का लालच पारिवारिक रिश्तों को भी लील जाता है। इसी कारण कई उत्तराधिकारी अपने हिस्सा भी गवां बैठते हैं। ऐसा बेटियों के साथ ही नहीं बेटों के साथ भी होता है। ऐसे में दोनों के लिए पैतृक संपत्ति में अपने हक (How to claim your share in an ancestral property) को लेकर बारीकी से जानना जरूरी है।
जन्म के साथ ही हो जाता है प्रोपर्टी में हिस्सा
पैतृक संपत्ति में किसी व्यक्ति का कितना हक (Grandson's right in grandfather's property) होता है, यह कानूनी रूप से जान लेना भी जरूरी है। यदि दादा, पिता और भाई पैतृक संपत्ति में हिस्सेदार हैं तो आप भी समान रूप से हकदार व हिस्सेदार हैं। मतलब आपको भी पैतृक संपत्ति में हिस्सा मिलना चाहिए। कानूनी रूप से भी जन्म के साथ ही पैतृक संपत्ति में हिस्सा होता है। इतना ही नहीं, पैतृक संपत्ति में बेटियों को भी बराबर अधिकार (Dada ki property me pota poti ka hak) है। ऐसी प्रोपर्टी के बंटवारे के लिए उनकी सहमति जरूरी होती है। वे चाहें तो कोर्ट में हक के लिए चुनौती भी दे सकती हैं। पैतृक संपत्ति को बेचा जाता है तो भी बेटियों का हिस्सा उनकी मर्जी के विरुद्ध नहीं बेचा जा सकता।
दो तरह की होती है संपत्ति
कानून के अनुसार संपत्ति को दो वर्गों में रखा गया है। एक तो पैतृक संपत्ति और दूसरी स्वअर्जित संपत्ति यानी खुद की कमाई से अर्जित की हुई प्रोपर्टी। पैतृक संपत्ति (Son's right in father's property) पूर्वजों से मिली संपत्ति होती है, यह चार पीढ़ियों तक पैतृक होती है यानी चार पीढ़ी के लोगों का इसमें हिस्सा होता है। हालांकि स्वअर्जित संपत्ति को पिता किसी भी अपनी मर्जी से दे सकता है, वह अपने बेटा व बेटी को यह संपत्ति देने से इन्कार भी कर सकता है और बेटा-बेटी दावा भी नहीं कर सकते, न ही कोर्ट में चुनौती दे सकते।
पैतृक संपत्ति में हिस्सा न मिलने पर यह करें
आपको यदि पैतृक संपत्ति में आपका हक या हिस्सा न मिले तो आप कानून की मदद ले सकते हैं। दादा, पिता व भाई पैतृक संपत्ति (ancestral property) में हिस्सा न दे रहे हों तो आप उन्हें कानूनी नोटिस (legal notice) भिजवा सकते हैं। आप संपत्ति पर अपना दावा पेश कर सकते हैं। इसके लिए बाकायदा सिविल कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। मामले के विचाराधीन रहने के दौरान प्रापर्टी को किसी को भी बेचा न जाए, यह सुनिश्चित करने के लिए आप कोर्ट से स्टे ले सकते हैं यानी उक्त प्रोपर्टी की बिक्री पर रोक लगाने की मांग कर सकते हैं। इसके बावजूद अगर आपकी सहमति के बिना ही संपत्ति बेच दी जाए तो आप वह प्रोपर्टी खरीदने वाले को केस में पार्टी बना सकते हैं और अपने हिस्से का दावा कर सकते हैं।
पैतृक संपत्ति में अब बेटियों को भी उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त
2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून को संशोधित किया गया। इसमें पैतृक संपत्ति में बेटियों के अधिकारों (ancestral property me kiska kitna hak hota hai)को बेटों के बराबर सुनिश्चित किया गया। इससे पहले ऐसी संपत्ति के लिए केवल परिवार के पुरुषों को ही उत्तराधिकारी का दर्जा दिया जाता था। यहां पर यह भी बता दें कि यह संशोधन हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम -1956 के प्रावधान- 6 में किया गया था। अब पैतृक संपत्ति में बेटियों को भी उत्तराधिकारी का दर्जा प्राप्त है।