Ancestral Agricultural Land : पैतृक कृषि भूमि बेचने को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने दिया बड़ा निर्णय
supreme court decision on agricultural land : लोगों को अक्सर प्रोपर्टी से संबंधित नियमों और कानूनों (property knowledge) को लेकर जानकारी का अभाव होता है। इस कारण इनसे जुड़े सवालों में उलझे रहते हैं। जानकारी के अभाव के चलते ही आमतौर पर संपत्ति संबंधी विवाद (property dispute) भी होते हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि लोगों को संपत्ति संबंधी नियमों-कानूनों (Property Law) के बारे में सामान्य समझ हो। पैतृक संपत्ति (Ancestral Agricultural Land ) से जुड़े एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की ओर से महत्वपूर्ण निर्णय दिया गया है।

My job alarm (supreme court decision agricultural land) : भारत में अगर जमीन के सामान्य वर्गीकरण को देखें तो मुख्यत किसी भी व्यक्ति के द्वारा 2 प्रकार से जमीन अर्जित की जाती है। पहली वो जोकि व्यक्ति ने खुद से खरीदी है या उपहार, दान या किसी के द्वारा हक त्याग आदि से प्राप्त की हो। इस तरह की संपत्ति को स्वयं अर्जित प्रोपर्टी (Self Acquired Property) कहा जाता है।
इसके अलावा दूसरी प्रकार की वो प्रोपर्टी होती है जो कि पिता ने पूर्वजों से प्राप्त की है। इस प्रकार से मिली प्रोपर्टी को पैतृक संपत्ति (Ancestral Property) की श्रेणी में रखते हैं। पैतृक संपत्ति को खुद से खरीदी गई संपत्ति (Self Acquired Property) की तुलना में बेचने को लेकर कानून सख्त हैं। इसी को लेकर सर्वोच्च अदालत (Supreme Court) की ओर से महत्वपूर्ण फैसला दिया गया है।
पैतृक कृषि भूमि बेचने के लिए इन लोगों की सहमति जरूरी
सर्वोच्च अदालत (Supreme Court ) ने हाईकोर्ट (High Court) के फैसले को सही ठहराते हुए स्पष्ट किया कि हिंदू उत्तराधिकारी अधिनियम की धारा 22 कृषि भूमि पर भी लागू होगी। धारा 22 के मुताबिक संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति का बंटवारा (property division) होने से पहले यदि उत्तराधिकार में मिली संपत्ति को कोई एक सदस्य बेचना चाहे, तो अन्य वारिस उस संपत्ति को खरीदने का दावा प्राथमिकता के आधार पर कर सकते हैं यानी प्रोपर्टी को किसी तीसरे व्यक्ति को बेचने से पहले अन्य वारिसों की सहमति लेना जरूरी है।
कृषि भूमि बेचने का पहले ये था कानून
इस व्यवस्था से पहले कृषि पैतृक भूमि को हिस्सेदार (property sharer) किसी अन्य खरीदार को दूसरे हिस्सेदार से बिना पूछे बेच सकता था। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने स्पष्ट किया था कि हिंदू सक्सेशन एक्ट के प्रावधान कृषि भूमि से जुड़े विवादों (agricultural land dispute) पर भी लागू होंगे।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश संजय करोल व न्यायाधीश धर्मचंद की खंडपीठ ने दो विरोधाभासी एकल पीठों के निर्णयों पर अपना रुख स्पष्ट करते हुए यह फैसला सुनाया था।
2008 में हाईकोर्ट ने सुनाया ये फैसला
साल 2008 में हाइकोर्ट की एकलपीठ ने फैसला सुनाया था कि हिंदू सक्सेशन एक्ट के प्रावधान कृषि भूमि की बिक्री (agricultural land sale law) पर लागू नहीं होते। 2015 में पारित फैसले में दूसरी एकलपीठ ने यह निर्णय सुनाया कि हिंदू सक्सेशन एक्ट के प्रावधान कृषि भूमि की बिक्री पर लागू होते हैं। इसके बाद 2 विरोधाभासी फैसलों के ध्यान में आने के बाद एकल पीठ ने इस मामले को हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष उचित फैसले के लिए भेजा था।
जिस पर खंडपीठ ने 2015 में पारित फैसले को सही करार देते हुए ये स्पष्ट कर दिया कि हिंदू सक्सेशन एक्ट की धारा 22 के मुताबिक कृषि योग्य भूमि सहित सभी तरह की भूमि से जुड़े विवादों (land dispute) के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।
इस फैसले के आधार पर न्यायाधीश सीबी बारोवलिया ने सात मई 2018 को बाबू राम की अपील को खारिज करते हुए उक्त व्यवस्था को उचित ठहराया था। बाबू राम ने सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) में हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी।